Monday 12 December 2016

इनके चेहरे पर निशान हैं पर कोई शिकन नहीं



 ताज नगरी आगरा शीरोज हैंगआउट कैफ़े की वजह से भी जानी जा रही है. कैफ़े में काम करने वाले ख़ास चेहरे वो हैं जो खुद पर हुए एसिड अटैक से लड़कर एक नई ज़िन्दगी का आग़ाज़ कर चुके हैं. दया और खौफ से आगे बढ़ने की हिम्मत जुटाना बहुत दूर की बात है, हम में कई तो इससे आगे की सोच भी नहीं पाते. खाने का आपका ऑर्डर लेने से लेकर इसे परोसने तक का सारा काम कुछ ऐसी युवतियां-महिलाएं करती हैं जो खुद एसिड हमले की शिकार रही हैं. शीरोज हैंगआउट कैफ़े में इन्हें आवाज ही नहीं मिली है बल्कि इनके सपनों को भी पंख लग गए हैं. शीरोज हैंगआउट के मेन्यू में चाय और कॉफी के अलावा कई तरह के शेक भी हैं. यहां के मेन्यू में टोस्ट, नूडल्स, फ्रेंच फ्राई, बर्गर, विभिन्न तरह के सूप, डेजर्ट और दूसरी कई चीजें खाने पीने को मिल जाएंगी.
इस कैफ़े में हम पहुंचे तो हमने देखा कि सब लड़कियों में एक खास बात है... वो ये है कि इनके चेहरे पर हर वक्त एक स्माइल रहती है. मेरा नाम सोनिया चौधरी है, मुझ पर 2004 में अटैक हुआ.
12 साल पहले बिना आईडी के कोई सेलफोन नहीं ले सकता था, मेरे पास कोई आईडी नहीं थी.
पड़ोस में ही एक बंदा था, जिन्हें मैं भाई बोलती थी. उन्होंने ही मुझे एक फोन लाकर दिया, जो चोरी का था, पर मुझे ये बात नहीं मालूम थी.मेरे पास एक कॉल आया, उधर से एक आदमी बोला कौन बोल रहे हो. मैंने कहा आप कौन बोल रहो? मैं दारोगा बोल रहा हूं, आप जो फोन यूज कर रहे हो, वह चोरी का है, कहां से लिया आपने. मैंने उन्हें अपने पड़ोसी का नाम-पता बता दिया.जब मैं शाम को घर आई तो मुझे पता चला उन्हें (पड़ोसी) पुलिस पकड़ के ले जा चुकी है. अगले दिन जब वह जेल से आए तो वे अपने घर जाने के बजाय मेरे घर आकर बोला कि सबके सामने मुझसे माफी मांगों, जिसके लिए मैंने साफ मना कर दिया. फिर उन्होंने डैडी को भी धमकी दी.अगले दिन जैसे ही मैं अपने घर से 10-15 कदम की दूरी पर थी, तो देखा दो लोग बाइक से आ रहे हैं. मुझे नहीं पता था, वो बाइक मेरे लिए क्या लेकर आ रही है. पीछे वाले के हाथ में दो-तीन लीटर की केन थी, जिसके अंदर एसिड था. वो मुझ पर डालते हुए एकदम से निकल गए.मैं कहती हूं इलाज के दौरान सफदरजंग में इंसान को इंसान नहीं समझा जाता. जब मैं आईसीयू से बाहर आई और जब मेरी ड्रेसिंग होती थी, वो मेरे लिए एक तरीके से मौत थी.मेरे एक रिलेटिव ने बोला कि इसे जहर का इंजेक्शन लगा दो, बेकार हो गई है. क्यों पैसा वेस्ट कर रहे हो. मेरे डैडी ने कहा, मेरी बेटी है, जब तक जिंदा है, तब तक चाहे मुझे उधार लेना पड़े या कुछ भी बेचना पड़े, मैं तैयार हूं. तब मुझे लगा कि डैडी मेरे लिए इतना कुछ कर रहे हैं तो मैं इनके लिए तो बच ही सकती हूं. 
एसिड अटैक की शिकार महिलाओं के लिए स्टॉप एसिड अटैक अभियान चलाने वाली लक्ष्मी और उनके साथी आलोक दीक्षित यह कैफे शुरू कर रहे हैं. उनके साथ चार पांच और तेजाब के हमले की पीड़ित युवतियां यहां काम करेंगी. इस तरह के कैफे अब तक आगरा और लखनऊ में चल रहे हैं. अब ये लोग मिलकर उदयपुर में कैफे 'शीरोज हैंगआउट' शुरू कर रहे हैं. उदयपुर के एक मॉल में शुरू होने वाला यह कैफे अपनी तरह का देश में तीसरा कैफे होगा.
News Source- Pradesh 18

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