Thursday 29 December 2016

यूं जीत लिया जिंदगी की रोशनी ने कैंसर के अंधेरों को


हरमाला बताती हैं, ‘बात उन दिनों की है जब मैं शादी के बाद मॉन्ट्रियल में अपनी थीसिस पूरी कर रही थी। जिंदगी में जो कुछ चाहिए था, सब था। अच्छा पति, तीन साल का बेटा, सुखमय जीवन और कुछ करने की चाह। तभी अचानक सब कुछ बदल गया। सन 1986 में, जब मैं 33 साल की थी, पता चला कि मुझे कैंसर है और वह भी चौथे स्टेज का। एक पल को लगा जिंदगी मुझसे रूठ गई। अब सब कुछ खत्म होने को है। लेकिन अपने सामने छोटे से बेटे को देख जीने की इच्छा ने साथ नहीं छोड़ा। इलाज चला। सही ट्रीटमेंट और घरवालों के सहयोग ने टूटने नहीं दिया। इस पूरी प्रक्रिया में मैंने यह जाना कि कैंसर जैसी बीमारी को झेलना आसान नहीं है और उस पर से समाज का रवैया बची-खुची उम्मीद को खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ता। लोग कैंसर जैसी बीमारी का नाम लेने से भी डरते हैं।
‘एक लंबी प्रक्रिया और मानसिक व शारीरिक कष्ट के बाद मैं ठीक तो हो गई, लेकिन इस नागवार डरावनी बीमारी की अनेक सच्चाइयों से रूबरू भी हो गई। मेरे पास इलाज के लिए पैसा भी था और साधन भी। ऐसे अनेक लोग हैं जो न ठीक से इलाज ही करवा पाते हैं और न ही उन्हें सेवा और आत्मीयता मिल पाती है। वे बीमारी से ज्यादा हालात से मजबूर हो हार मान लेते हैं। मुझे अब अपने जीने का मकसद मिल गया था। मुझे ऐसे ही लोगों के लिए काम करना था। ’

कैंसर पीड़ितों के लिए मदद का हाथ
‘1987 में भारत आकर मैंने कैन सपोर्ट नास से एक संस्था की शुरुआत की। इस संस्था को शुरू करने में ही ढेरों परेशानियां हुईं। आम लोग कैंसर पीड़ितों की मदद करने से भी हिचकते थे। जो लोग कैंसर से जूझ रहे थे यह इस बीमारी को मात दे चुके थे, सिर्फ वही कैंसर सहयोग को सहायता देने के लिए तैयार हो पाते थे। कुछ स्वयंसेवियों ने भी हमारा साथ दिया। हम कैंसर क्लीनिक जाते। कैंसर पीड़ितों की तकलीफ सुनते और कोशिश करते कि उनके इलाज को नि:शुल्क करवा पाएं। उन्हें सुनना, समझना और सांत्वना देना हमारा लक्ष्य था। इस बीमारी के प्रति लोगों में जागरूकता न के बराकर थी। लोगों को कैंसर से संबंधित सभी प्रकार की जानकारी देना भी हमारे दल का काम था।

‘दस साल एशिया के सबसे बड़े आई हॉस्पिटल श्रॉफ की मैं पीआर रही। लेकिन मुझे कुछ बड़ा करना था। अंबानी की तरह अपना बिजनेस साम्राज्य खड़ा करना था। इसी दिशा में सिल्वर लाइनिंग शुरू की। घने बादलों के बीच उम्मीद की किरण के रूप में। तब से फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मानव सेवा अवॉर्ड से लेकर ब्रेवरी अवॉर्ड जैसे तमाम पुरस्कार मिले। हर कदम पर बढ़ते हुए कड़वी लेकिन ठोस सच्चाइयो ंका सामना करना पड़ा। पर, इतने सालों के अपने अनुभव से मुझे एक ही बात समझ में आई है कि सपने आपके सामने होते हैं, आपको उसे हाथ बढ़ाकर पकड़ना भर होता है।’
Source - HT

ये हैं देश की पहली महिला कमांडो ट्रेनर


सीमा राव यूं तो पेशे से डॉक्टर हैं। एमबीए की डिग्री भी उनके पास है। पर, उनका शौक कुछ और ही था। उनके इसी शौक ने उन्हें आज इस मुकाम पर पहुंचा दिया है। अपनी इस राह में सीमा ने पारिवारिक और आर्थिक रूप से कई चुनौतियों का सामना किया, पर कभी भी उनके आगे हार नहीं मानी। सीमा मिलिट्री मार्शल आट्र्स में 7-डिग्री ब्लैक बेल्ट होल्डर हैं। ऐसा करने वाली वो भारत की एकमात्र महिला हैं। पिछले 20 सालों से वो अलग-अलग तरह की सेना की टुकड़ियों को आमने-सामने की लड़ाई में दुश्मनों को मात देने का गुर सिखा रही हैं और वह भी बिल्कुल मुफ्त में। इसके अलावा सीमा कॉम्बैट शूटिंग इंस्ट्रक्टर, फायरफाइटर, स्कूबा डाइवर और रॉक क्लाइम्बर भी हैं।
सीमा बताती हैं, ‘मैं बचपन से ही अपने पिता जैसा बनना चाहती थी। मेरे पिता स्वतंत्रता सेनानी थे। मैं हमेशा से देश के लिए कुछ करना चाहती थी। फिर मेरी मुलाकात मेरे पति मेजर दीपक राव से हुई। एक व्यक्ति में मुझे मेरी पूरी दुनिया मिल गई। मात्र 18 साल की उम्र में हमें यह महसूस हो चुका था कि हम अपनी पूरी जिंदगी एक-दूसरे के साथ बिताना चाहते हैं।’
मेरे पति जानते थे कि मैं खुद को सशक्त करना चाहती थी और साथ ही देश के लिए भी कुछ करना चाहती हूं। मेरी इस चाहत की मजबूत नींव उन्होंने डाली मुझे मार्शल आट्र्स सिखाकर। सुबह से शाम तक हम लोग अपना रूटीन का काम करते और रात में घर लौटने के बाद मार्शल आट्र्स। मार्शल आट्र्स सीखने के बाद मैं दिन-ब-दिन ज्यादा शक्तिशाली महसूस करने लगी थी। एक बार पुणे में हमारी मुलाकात आर्मी के कुछ लोगों से हुई जो सुबह के वक्त ट्रेनिंग कर रहे थे। हमने उन्हें अपना परिचय दिया और उनसे पूछा कि क्या हम उन्हें अपनी ट्रेनिंग दिखा सकते हैं? उस एक हां के बाद से हमने आज तक पीछे मुड़कर नहीं देखा है। हमने आर्मी के सैनिकों को उसके बाद से ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी।’
अकसर लोग कहते हैं कि हमारा समाज पुरुष प्रधान है, पर मैंने कभी अपने महिला होने को अपने सपनों की राह में रोड़ा नहीं बनने दिया। हमारा रिश्ता बराबरी का है और तभी यह इतना मजबूत है। जिंदगी की हर राह पर हम दोनों ने एक जैसा योगदान दिया है। एक समाज आगे तभी बढ़ सकता है, जब पुरुष और महिला दोनों एक जैसे मजबूत हों और जहां दोनों को एक जैसा सम्मान मिले।’
Source - HT

Wednesday 28 December 2016

65 की उम्र में हाईस्कूल पास कर अतहर बना हीरो!


कहावत है कि पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती, इंसान के अंदर जज्बा हो तो वह शिक्षा से तमाम ऊंचाइयों को छू सकता है. वेद, पुराण, कुरआन, बाइबिल सभी पवित्र किताबें शिक्षा को बढ़ावा देतीं है. शिक्षा के लिए तो लोग दूसरे देशों तक कि यात्रा कर अपने को उस विधा में निपुण बनाने का प्रयास करते हैं.
इसी को सत्यार्थ करते हुए पैंसठ वर्षीय वृद्ध जो अपने पढ़ाई के जज्बे को रोक न पाया और उसने उप्र बोर्ड की हाईस्कूल परीक्षा पढ़कर दे डाली और जब रिजल्ट आया तो वह अच्छे नम्बरों से पास भी हो गया. इसके बाद से ही पूरे इलाके के लोग अभी तक उसे बधाइयां दे रहे हैं. नतीजे आने के बाद से अभी तक इस बुजुर्ग को इस कदर शुभकामनाएं मिल रही हैं कि अब पूरे जनपद में वह सुर्खियों में आ गया है.
खागा तहसील के ग्राम रहमतपुर निवासी 65 वर्षीय अतहर अहमद खां को अपने निरक्षर होने की बात हमेशा अखरती रही. साक्षर मिशन से प्रभावित होकर वृद्ध अतहर ने हाईस्कूल की परीक्षा दे डाली और पहले ही प्रयास में वह सफल हो गया. इसके बाद धीरे-धीरे जब लोगों को अतहर के पास होने की सूचना मिली तभी से उसके घर बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है.
बुजुर्ग अतहर ने आईपीएन को बताया कि इस दुनिया में अब निरक्षर होने का कोई मतलब नहीं है. साक्षर व्यक्ति ही अपनी जिंदगी को रोशनी और उमंगों के साथ जी सकता है. इस बुजुर्ग ने सभी से आह्वान किया कि वह स्वयं पढ़ें और अपने बच्चों को भी पढ़ाने की कोशिश करें जिससे उनके ऊपर से निरक्षर होने का दाग मिट जाए.
Source- ABP News

शादी के गिफ्ट में टॉयलेट मांगने वाली दुल्हन को 10 लाख का इनाम


शादी के तोहफे के रूप में अपने मायके वालों से ससुराल में शौचालय मुहैया करने की मांग करने वाली महाराष्ट्र की एक दुल्हन को एक स्वच्छता एनजीओ 10 लाख रूपये का पुरस्कार देगा. उसने शौचालय को वरीयता दी थी.
अपने विवाह में पिता से गहनों के बजाय शौचालय की मांग करने वाली युवती को सुलभ इंटरनेशनल ने 10 लाख रुपये का इनाम दिया है. महाराष्ट्र के अकोला जिले की रहने वाली चैताली गलाखे को अपनी शादी के कुछ दिनों बाद यह पता चला कि उनके ससुराल में शौचालय की सुविधा नहीं है.
स्वच्छ भारत अभियान से प्रेरित होते हुए अकोला जिले की महिला ने अपने ससुराल में शौचालय होने पर जोर दिया और शादी के अन्य तोहफों से पहले बुनियादी स्वच्छता जरूरतों को सामने रखा.
अकोला जिले के बालापुर तहसील स्थित अंदुरा गांव की चैताली गलाखे के प्रेरणादायी कदम की सराहना करते हुए सुलभ इंटरनेशनल ने आज उसके लिए 10 लाख रूपये के नकद पुरस्कार की घोषणा की.
इसकी घोषणा करते हुए प्रख्यात स्वच्छता विशेषज्ञ और सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक ने चैताली को एक महान स्वच्छता प्रेरक और संदेशवाहक बताया.
ग्रामीण महिला के कदम की सराहना करते हुए पाठक ने इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अभियान के एक प्रभाव के तौर पर देखा, जो आम आदमी को स्वच्छता की जरूरतों की ओर प्रेरित करता है. उन्होंने उसे जल्द ही सुलभ स्वच्छता पुरस्कार के तौर पर 10 लाख रूपये का चेक दिये जाने की घोषणा की.
पाठक ने कहा, ‘‘मैं इसे मोदी की एक उपलब्धि मानता हूं जब उनकी सरकार ने एक साल पूरे कर लिये हैं.’’ महाराष्ट्र के यवतमल जिला निवासी के साथ चैताली की शादी देवेंद्र माकोडे से हुई है. अकोला के अंदुरा गांव में 15 मई को उसकी शादी में शौचालय निर्माण के सामान और एक वाश बेसिन सभी लोगों के आकषर्ण का केंद्र बने हुए थे.
चैताली ने बताया, ‘‘मेरी शादी तय होने के पांच दिन बाद, मुझे पता चला कि मेरे ससुराल में शौचालय नहीं है.’’ उसने बताया, ‘‘मैंने अपने पिता और चाचा से एक शौचालय मुहैया करने को कहा. उन लोगों ने मेरे अनुरोध को पूरा किया. मुझे लगता है कि शादी के दौरान आमतौर पर दिए जाने वाले अन्य सामानों से यह कहीं ज्यादा उपयोगी है.’’
विश्व बैंक के अनुसार, भारत में 53 फीसदी लोग खुले में शौच करते हैं. 

Source- ABP News

एक हाथी की सेल्फी, जो आपको दांतों तले उंगली दबाने पर मजबूर कर देगी.


एक हाथी की सेल्फी, जो आपको दांतों तले उंगली दबाने पर मजबूर कर देगी.
हाथी की इस सेल्फी को ‘एल्फी’ के नाम से संबोधित किया जा रहा है. वेबसाइट ‘ग्लोबलन्यूज डॉट सीए’ के मुताबिक, सोशल नेटवर्किंग साइट पर इस हाथी की सेल्फी एल्फी ट्रेंड कर रही है. यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के पूर्व छात्र क्रिस्टिन लेब्लैंक ने इसे पोस्ट किया है. यह एल्फी दक्षिणपूर्व थाईलैंड के कोह फांगान द्वीप पर ली गई.
लेब्लैंक ने ‘ग्लोबलन्यूज डॉट सीए’ को बताया, “मैं फोटो खींच रहा था और हाथी को केला खिला रहा था, जब मेरे केले खत्म हो गए तो हाथी ने मेरा गोप्रो कैमरा लपक लिया. कैमरा टाइम लेप्स सेटिंग पर था. इसके बाद लगातार कई सेल्फी खींचती रही. लेब्लैंक ने इन तस्वीरों को इंस्टाग्राम पर साझा किया है.
काले मैकाक ने ऐसी ही एक अद्भुत सेल्फी पिछले साल इंडोनेशिया द्वीप के सुलावेसी में ली थी. इस सेल्फी पर विकीपीडिया और फोटोग्राफर के बीच विवाद भी हुआ था. दरअसल, दोनों ही इस पर अपने स्वामित्व का अधिकार जता रहे थे.
Source - ABP News

कैदी ने जेल में बनाया TAJ MAHAL, देखें LOVE का अनोखा अंदाज


डि‍स्‍ट्रि‍क जेल में बंद फ्रांस के एक कैदी अलबर्ट पास्कल शाइने ने माचिस की 30 हजार तीलि‍यों से ताज महल का मॉडल बनाया है। यूनि‍क तरीके से बने इस ताज को वह न्‍यू ईयर गि‍फ्ट के रूप में पत्‍नी को देकर प्‍यार का इजहार करना चाहता है। जेल एडमि‍नि‍स्‍ट्रेशन ने इस नायाब तोहफे को सुरक्षित रखने के लिए उसकी बैरक के एक साथी धीरेंद्र पटेल के घर भि‍जवा दिया है। 3 किग्रा चरस के साथ अरेस्‍ट हुआ था अलबर्ट...
-फ्रांस का रहने वाला कैदी अलबर्ट पास्कल शाइने 3 किग्रा चरस के साथ साल 2014 के अंत में इंडो-नेपाल के सोनौली बॉर्डर पर पकड़ा गया।
-उस पर एनडीपीएस एक्‍ट के तहत कार्रवाई हुई। वह तब से महराजगंज जेल में बंद है। उसके अरेस्‍ट होने के बाद से परिजन और पत्नी उससे मिलने नहीं आए। केवल कुछ मित्र आए हैं।
-एचआईवी का पेशेंट है। जमानतदार नहीं मिलने के कारण उसकी रि‍हाई नहीं हो सकी है। 
-इन दि‍नों उसका एक फ्रांसीसी फ्रेंड उससे मि‍लने आया हुआ है।
ताज बनाने का आइडि‍या कैसे आया
-जेल में अलबर्ट की बैरक में ही गोरखपुर जि‍ले के किशुनपुर गांव का धीरेंद्र पटेल चरस तस्करी के आरोप में पिछले 2 दिसंबर 2015 से बंद है। साथ ही मनौव्वर नाम का एक बंदी भी वहां है।
-बैरक में भाषाई दिक्कत से अलबर्ट चुपचाप रहता था।
-तन्हाई में वह अपनी कारीगरी को कैनवस पर उतारने लगा। इसे देख बैरक के अन्य बंदी उसके करीब आए गए।
-दोस्ती होने पर संकेतों के माध्यम से उसने अपनी इच्‍छा जाहि‍र की।
- इस पर बैरक के साथि‍यों ने अलबर्ट से ताज महल बनाने का प्रस्ताव रखा।
-जेल के अफसरों ने कारीगरी देख उसको हुनर दिखाने का साजो-सामान मुहैया कराया।
30 हजार तीली और 2 Kg फेवि‍कोल से बनाया ताज
- 30 हजार माचिस की तीली और 2 Kg फेविकोल से अलबर्ट ने धीरेन्द्र, मनौव्वर और बैरक के अन्य साथियों की हेल्‍प से ताज महल का खूबसूरत मॉडल बना दिया।
- उसका कहना है कि जेल में बनाया गया ताज प्यार और सहयोग की निशानी है। वह इसे अपनी पत्नी को नए साल में गिफ्ट करेगा।

किसान की यह बेटी रौशन करना चाहती है देश का नाम


31वीं जूनियर नेशनल एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में ब्रांज मेडल जीत चुकी किसान की बेटी अंकिता सिंह लगातार तीसरी बार यूनिवर्सिटी की एथलीट मीट में चैम्पियन बनी। उसने 100 मीटर बाधा दौड़ और 400 फ्लैट रेस में अपना ही रिकॉर्ड ब्रेक कि‍या। dainikbhaskar.com से हुई खास बातचीत में उसने कहा कि एथलीट में इंटरनेशनल लेवल पर नाम रोशन कर पिता के सपनों को पूरा करना चाहती है। 

-अंकिता सिंह ने 22 से 25 नवंबर 2015 में रांची के बि‍रसा मुंडा स्पोर्ट्स स्टेडियम में 31वीं जूनियर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में कांस्य मेडल हासिल कि‍या।
-वे कहती हैं कि जूनियर नेशनल अवार्डी को 50 हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि राज्य सरकार देती है जो उसे आज तक नहीं मिली।
-उसने गोरखपुर एथलेटिक्स एसोसियेशन के अध्यक्ष एनडी सोलंकी को अपना सभी डाक्यूमेंट्स समय पर दे दिया था.
-वह और उसका परिवार आर्थि‍क तंगी से गुजर रहा है।
बड़ी बहन और कोच कमलेश पाल करते हैं आर्थिक मदद
-अंकिता सिंह गोरखपुर जिले के झंगहा क्षेत्र के निवासी स्व. किसान जय सिंह और दशवंती देवी की बेटी है।
-उसकी एक बड़ी बहन सुनीता सिंह है। सुनीता कानपुर में रहती है और वह स्वास्थ्य विभाग में एएनएम है।
-अपने परिवार के साथ ही सुनीता अपनी छोटी बहन अंकिता और माता का भी पालन-पोषण करने में सहायता करती है।
-अंकिता सिंह बेहद गरीब है। उसके पिता के सपनों को पूरा कराने में उसके कोच कमलेश पाल आर्थिक रूप से भी मदद देते रहते हैं।
कालेज के प्रबंधक करते हैं मदद
-अंकिता सिंह सरस्वती देवी महाविद्यालय नंदापार, गोरखपुर की बीए थर्ड ईयर की स्टूडेंट है।
-वह कहती है कि कालेज के प्रबंधक पवन दूबे खिलाड़ियों की काफी मदद करते हैं।
-उसने कहा कि कालेज में उसकी महज 1500 रुपए फीस लगती है जबकि फीस 7500 रुपए से अधिक है।
-इसके अतिरिक्त कालेज प्रबंधक द्वारा कोई नया कीर्तिमान बनाने पर नकद पुरस्कार भी खिलाड़ियों को देते हैं।
रेलवे की नौकरी करना चाहती है अंकिता सिंह
-अंकिता अंकिता सिंह का कहना है कि आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उसे फ़ौरन एक नौकरी की दरकार है।
-रेलवे में नौकरी मिले तो बेहतर है।
-रेल की नौकरी इसलिए बेहतर है क्योंकि वहां खिलाड़ियों को खेलने के लिए और देश का नाम रोशन करने के लिए काफी समय और सुविधा दी जाती है।
ये सुविधा मिले तो खिलाड़ी और बेहतर कर सकते है परफार्म
-अंकिता सिंह के कोच कमलेश पाल ने कहा कि खिलाडियों को सुविधा यहां नहीं के बराबर है।
-रीजनल स्पोर्ट्स स्टेडियम में खिलाड़ियों के कोई ख़ास सुविधा नहीं है।
-सुविधा है भी तो वह सामान्य खिलाड़ियों को न मिलकर पहुंच वाले उसका उपयोग करते हैं।
-उन्होंने कहा कि एथलीट को हफ्ते में दो दिन वेट ट्रेनिंग करनी होती है। 
-उनकी मसल्स मजबूत हो सके लेकिन उनके खिलाड़ियों को रीजनल स्पोर्ट्स स्टेडियम के उस सेंटर में घुसने तक नहीं दिया जाता।
-गवर्नमेंट कोच के पास बच्चे जाना नहीं चाहते।
-वे प्राइवेट रूप से इन्हें कोच करते हैं। वह भी आये दिन ग्राउंड में कुछ लोग उनसे विवाद करने को उतारू रहते हैं।
-खिलाड़ियों को यहां साफ पेयजल तक की व्यवस्था नहीं होती है।
-अंकिता सिंह जैसे खिलाड़ियों को पढ़ने और उनकी डाईट के लिए गवर्नमेंट को चाहिए कि वह आर्थिक मदद हर महीने करे।

Source - Dainik  Bhaskar

चलता-फि‍रता ATM है यह शख्‍स, जानें कैसे करता है पेशेंट्स की हेल्‍प

 
गोरखपुर के जिला अस्‍पताल में स्‍वाइप मशीन लेकर रवि‍वार को एक व्‍यक्‍ति‍ पहुंचा। उन्‍होंने पेशेंट्स के अटेंडेंट्स से कहा कि‍ जरूरतमंद लोगों को एटीएम जाने की जरूरत नहीं है। वे कैश देकर हेल्‍प कर सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल को सफलता दि‍लाना ही उनका मकसद है। यह सुनते ही उनके आसपास भीड़ लग गई। लोगों ने मशीन में एटीएम कार्ड और पिन डालकर उनसे रुपए लि‍या और शख्‍स को चलता-फि‍रता ATM बताया। .
- दूध के व्‍यापारी आलोक सिंह विशेन स्‍वाइप मशीन लेकर रवि‍वार को गोरखपुर के जिला अस्‍पताल पहुंचे।
- इमरजेंसी में पेशेंट्स के अटेंडेंट्स से उन्‍होंने पूछा रुपए की जरूरत कि‍से है? साथ ही कहा कि‍ जरूरतमंद लोग उनके पास मौजूद मशीन पर अपना एटीएम कार्ड स्‍वाइप कर दें। इसके बाद वे अपने पास मौजूद कैश उन्‍हें दे देंगे।
- यह सुनकर उनके आसपास पेशेंट्स के अटेंडेंट्स की भीड़ लग गई।
कि‍नको मि‍ली मदद
केस-1

-इमरजेंसी के अंदर आलोक सिंह विशेन के पास सबसे पहले गोरखपुर के रहने वाले सेना के जवान मुख्‍तार यादव पहुंचे।
-उन्‍होंने एटीएम कार्ड स्‍वाइप की और एक हजार रुपए कैश प्राप्‍त किए। 
-उन्‍होंने बताया कि उनकी पत्‍नी गैस से जल गई है और इमरजेंसी के बर्न वार्ड में भर्ती है।
-उन्‍हें जब पता चला तो वह छुट्टी लेकर यहां पर आए हैं। यहां आने के बाद उन्‍हें कैश की दिक्‍कत हो रही थी।
-अब आलोक सिंह से 1000 रुपए पाकर वह खुश हैं।
-उनका कहना है कि नोटबंदी से दिक्‍कत तो हो रही है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कदम सराहनीय है।
केस-2
-अपनी मां का इलाज कराने आए झंगहा के राकेश बताते हैं कि उनकी मां की तबियत अचानक खराब हो गई थी।
-वह उन्‍हें जिला अस्‍पताल की इमरजेंसी में भर्ती किए हैं।
-उन्‍होंने बताया कि हालांकि उनके पास एटीएम कार्ड नहीं था, लेकिन आलोक सिंह विशेन ने उन्‍हें आश्‍वासन दिया है कि वह एटीएम कार्ड ले आएं। इसके बाद कॉल करें, इसके 15 मिनट के भीतर वह उनके पास रुपए लेकर पहुंच जाएंगे।
केस-3
-देवरिया के रहने वाले एक पेशेंट के अटेंडेंट वासुकीनाथ तिवारी ने बताया कि उनके एक रिश्‍तेदार को उन्‍होंने अस्‍पताल में भर्ती किया है।
- रुपए खत्‍म होने पर वह एटीएम से निकालने जाने ही वाले थे। वे घबरा रहे थे कि‍ रुपए मि‍लेंगे या नहीं।
- जब उन्‍हें आलोक सिंह के बारे में जानकारी मि‍ली तो उनसे हेल्‍प ली। रुपए पाकर वे खुश हैं।
- उनका कहना है कि‍ यह बहुत ही सराहनीय पहल है। अन्‍य लोगों को भी ऐसे में परेशान लोगों की हेल्‍प के लिए आगे आना चाहिए।

क्‍या कहते हैं आलोक सिंह
-जिला अस्‍पताल पहुंचे दूध व्‍यापारी आलोक सिंह विशेन ने बताया कि शनि‍वार को पहला दि‍न था। संडे को दूसरा दि‍न है। अब यह काम वे हर संडे को करेंगे।
-उन्‍होंने बताया कि स्‍वाइप मशीन से वह अपने खाते में संबंधि‍त शख्‍स का रुपया ट्रांसफर करा लेते हैं। इसके बाद कैश के रूप में पेमेंट कर देते हैं।
-उन्‍होंने बताया कि वह शनि‍वार को 25 हजार रुपए और रवि‍वार को 35 हजार रुपए लेकर निकले। जरूरत के हिसाब से लोगों को 500 और 1000 रुपए की हेल्‍प कर रहे हैं।
-उन्‍होंने कहा कि अन्‍य लोगों को भी इस तरह की पहल करनी चाहिए, जिससे नोटबंदी में लोगों की मदद हो सके। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल को सफलता मि‍ल सके।

Source- Dainik Bhaskar

ऐसे फेंक दीं लाशें, सामने आया पुलिस का शर्मनाक चेहरा


यूपी के गाजीपुर में पुलिस का शर्मनाक चेहरा सामने आया है। यहां के पुलिस वालों की हरकत जान आप भी दंग रह जाएंगे। उन्‍होंने लावारिस व्यक्तियों के शव को पोस्टमॉर्टम के बाद दाह संस्कार के बजाय नाले में फेंक दिया। मामले का खुलासा गुरुवार को उस समय हुआ, जब पुलिस वालों द्वारा फेंका गया शवनाले से बरामद हुआ। आरोपित सिपाही और होमगार्ड को निलंबित कर दिया गया है।
बोरे में मिले शव
- गाजीपुर में डीएम आवास के बगल से गुजरने वाले नाले में गुरुवार को कई बोरे में बंद शव मिले।
- शव की शिनाख्त नहीं हो पाई थी। शव बुरी तरह सड़े गले थे। 
- पुलिस मामले की छानबीन कर रही थी। शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा गया तो मालूम चला कि शवों का तो पोस्टमॉर्टम हो चुका है। 
- ये सुनकर पुलिस अफसरों के होश उड़ गए।
- उनमें से 1 का तो पिछले 15 दिसंबर को ही पोस्‍टमॉर्टम हुआ था।

- तफ्तीश की गई तो खुलासा हुआ कि गाजीपुर जिला अस्पताल में भर्ती एक लावारिस व्यक्ति कि पिछले 12 दिसंबर को इलाज के दौरान मौत हो गई थी। 
- इसके बाद उसकी शिनाख्त के लिए तीन दिनों तक शव मर्चरी में रखा गया। 
- शिनाख्त न हो पाने पर शव का पोस्टमॉर्टम किया गया और शव को दाह संस्कार के लिए एक सिपाही-होमगार्ड को सौंप दिया गया। 
- आरोपी सिपाही और होमगार्ड ने शव का दाह संस्कार कराने के बजाय लावारिस शव को बोरे में भरा और नाले में फेंक दिया।
- लेकिन उनकी ये अमानवीय करतूत सबके सामने आ गई, जब शव नाले से निकाला गया।
क्‍या कहती है पुलिस
- पुलिस के मुताबिक, जो हुआ ये बेहद शर्मनाक है, ऐसा नहीं होना चाहिए।
- फिलहाल आरोपी सिपाही बुद्धिमान सिंह और होमगार्ड को तत्‍काल प्रभाव से सस्‍पेंड कर दिया गया है।

Source - Dainik Bhaskar

कचरे में मिली एक दिन की बच्‍ची, इस पुलिसवाले का काम सुन करेंगे Salute


यूपी के झांसी में 25 दिसंबर को किसी मां ने कचरे के ढेर पर एक दिन की बच्‍ची को ठंड में छोड़ दिया। इस बच्ची को एक पुलिस वाले और उसकी पत्नी ने अपना लिया। दोनों ने मिलकर बच्ची का नाम यीशु रखा है। उनका कहना है कि बच्ची उनके लिए क्रिसमस का तोहफा है। दंपत्ति के इस कदम को जिसने भी सुना वो उन्‍हें सेल्‍यूट कर रहा है।  
 
- झांसी के नवाबाद थाना क्षेत्र के पास पुलिस कॉलोनी में एक खंडहरनुमा भवन है। 
- यहां कचरे के कई ढेर भी हैं। आस-पास लोगों ने किसी बच्चे के रोने की तेज आवाज सुनी। 
- लोग खंडहर की तरफ गए तो दंग रह गए। वहां एक नवजात बच्ची ठंड में कूड़े के ढेर पर पड़ी हुई थी। 
- सूचना मिलने पर पुलिस कॉलोनी में रहने वाले अतीश यादव और उनकी पत्नी अंजू यादव भी मौके पर पहुंच गए।
 
 
पुलिसवाले ने लिया बच्‍ची को गोद  
 
 
- अतीश यादव झांसी के सीपरी बाजार थाने में ि‍सिपाहीके पद पर तैनात हैं।   
- उन्‍होंने तुरंत ही बच्ची के लिए नए कपड़े खरीदे। उसे कपड़े पहनाए। 
- इसके बाद उन्‍होंने नवाबाद थाना पुलिस को प्रार्थना पत्र देकर बच्ची को गोद लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी।
 
 
सिर्फ एक दिन की है बच्‍ची 
 
 
- अतीश ने बताया कि ये सब काम आनन-फानन करने के बाद वो बच्ची को लेकर डॉक्टर्स के पास पहुंचे। 
- वहां डॉक्टर्स ने बच्ची को पूरी तरह से स्वस्थ बताया। डॉक्टर्स के मुताबिक, बच्ची सिर्फ एक दिन की थी।
 
 
दो साल पहले इस कपल की हुई है शादी
 
 
- अतीश की पत्नी अंजू ने बताया कि दो साल पहले उनकी शादी हुई। 
- अभी उनका कोई बच्चा नहीं है। अब ये बच्ची ही उनकी बेटी है। 
- अंजू ने कहा कि कोई कैसे एक दिन पहले जन्मी मासूम को इस तरह ढेर पर फेंक सकता है। 
- जिसने इसे जन्म दिया वो जरूर देख रही होगी। कोई और नहीं है, अब मैं ही इसकी असली मां हूं।
 
 
क्रिसमस के कारण नाम रखा यीशु
 
 
- क्रिसमस पर मिलने के कारण बच्ची का नाम यीशु रखा है। 
- अंजू का कहना है कि क्रिसमस पर भगवान ने उन्हें तोहफा दिया है। 
- इसलिए भगवान के नाम पर ही इसका नाम होना चाहिए।

Source- Dainik Bhaskar

मैंने तो सिर्फ मदद मांगी थी, उन्होंने धक्के मारकर भगा दिया..बेटे को खोने वाले पिता की आप बीती..


चार अफसरों को हटाने के बाद भी हमीदिया का हाल नहीं बदला है। मंगलवार सुबह सर्जिकल वार्ड-2 में भर्ती गुना के एक मरीज के पिता ने इलाज नहीं मिलने की शिकायत सीनियर डॉक्टर से की तो जूनियर डॉक्टरों ने उन्हें पीटकर बाहर निकाल दिया। दोपहर बाद मरीज की मौत हो गई। 

मेरे 20 साल के बेटे अमीन की आंतों में छेद थे। ऑपरेशन के बाद सर्जिकल वार्ड-2 में भर्ती किया गया। तबीयत ज्यादा खराब होने पर उसे वेंटिलेटर पर रखा। उसके पेट में पाइप लगा था, वह लीक हो रहा था। उसमें से खून और पानी बह रहा था। ड्यूटी डॉक्टर से शिकायत की तो ध्यान नहीं दिया। नर्सिंग स्टाफ से चादर बदलने को कहा, लेकिन नहीं बदली गई। सीनियर डॉक्टर राउंड पर आए तो उनसे शिकायत की। इस पर जूनियर डॉक्टर भड़क गए। एक ने मेरे साथ मारपीट शुरू कर दी। गार्ड भी गलियारे तक मुझे धक्का मारते रहे। दोपहर बाद बेटे की मौत हो गई।



अमीन के परिजन कोहेफिजा थाने में एफआईआर दर्ज कराने के लिए पहुंचे। लेकिन पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की। कोहेफिजा टीआई अनिल वाजपेयी का कहना है कि जांच चल रही है। जल्दी आरोपी को गिरफ्तार कर लिया जाएगा।

वर्ष 2016 की आखिरी कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री ने कहा कि सभी मंत्री अपने विभागों के बारे में सोचें। दो साल बचे हैं। न खाएं और न ही किसी को खाने दें। कुछ भी होता है तो जिम्मेदारी विभागीय मंत्री की होती है। हमीदिया का प्रकरण सबके सामने है। हमने अधिकारी हटाए या सस्पेंड किए। इसलिए मंत्री ध्यान रखें।

‘डिजिटल इंडिया: विद लाडो’ अभियान की शुरूआत


जींद की बीबीपुर पंचायत ने एक मुहिम आज से शुरू की है जिसमें अब घरों के बाहर पुरूष प्रधान की नेमप्लेट नजर नहीं आएगी बल्कि अब उनकी जगह उनके घरों की बेटियों के नाम से नेमप्लेट लगी होगी.
‘बेटी बचाओ-सेल्फी बनाओ’ प्रतियोगिता के बाद प्रधानमंत्री से वाहवाही लूटने के बाद देश की पहली डिजिटल पंचायत बीबीपुर रविवार से ‘डिजिटल इंडिया: विद लाडो’ अभियान शुरूआत की.
सरपंच सुनील जागलान गांव के 30 घरों के मुख्य द्वार पर बेटियों के नाम की नेम प्लेट लगाकर इसकी शुरुआत की. बीबीपुर पंचायत के सरपंच ने आज खुद अपने घर की नेम प्लेट हटाकर उसकी जगह अपनी बेटी के नाम की नेम प्लेट लगायी.
इसके तहत बीबीपुर पंचायत के नुमाइंदे जींद के हर घर तक पहुंचेगे. हर घर के मुखिया एवं सदस्य को समझायेंगे कि नारी का सम्मान ही घर की असली शोभा है. इसलिए आप सब अपने घरों के दरवाजों पर अपनी नेम प्लेट की बजाय अपनी बेटी के नाम पर नेम प्लेट लगाए.
बेटियों के नाम के साथ नेम प्लेट के उपर ई-मेल और इसके साथ नेम प्लेट पर ‘डिजिटल इंडिया: विद लाडो’ भी लिखा है. सरपंच का कहना है कि वे चाहते है कि हर घर के बाहर घर के मुखिया का नाम नहीं बल्कि घर की लड़की का नाम हो. इसको लेकर यह मुहिम शुरू की गई है.
उन्होंने कहा कि वह इस मुहिम को हर घर तक लेकर जाऐंगे और उनका पूरा प्रयास होगा कि पहले चरण में बीबीपुर के हर घर के बाहर उनकी बेटी के नाम से नेम प्लेट लगाई जाए. नेम प्लेट लगाने का खर्चा खुद पंचायत वहन करेगी.
सरपंच ने कहा कि बेटी बचाओ-सेल्फी बनाओ प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागियों से भी अभियान के साथ जुडऩे की अपील की जाएगी.
पंचायत ने गांव में एक कार्यक्रम में गांव की महिलाओं और लड़कियों से मोबाइल से जुडी ऐसी सच्ची घटना लिखकर मांगी गयी, जिस घटना ने उनकी जिंदगी बदल दी हो. पंचायत ने ऐसी तीन महिलाओं को 25, 15 व 10 हजार रूपए इनाम देकर सम्मानित किया गया.
Image Source- India TV

16 साल पहले बिछड़े बाप-बेटे का मिलन हुआ इस ईद पर


वैसे तो हर ईद किसी ना किसी मामले में लोगों के लिए खास होता है लेकिन इस बार का ईद एक बाप और बेटे के लिए सही मायने में किसी फिल्मी कहानी से कही अधिक स्पेशल होगी . 26 साल के जाहिद पाशा के लिए यह ईद काफी स्पेशल इसलिए थी क्योंकि वह इसी दिन अपने पिता से 16 साल बाद मिलने वाला है. 
जी हां! उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के एक मदरसे से अगवा हुए जाहिद की जिंदगी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. दरअसल 16 साल पहले जाहिद को अपहरणकर्ताओं ने  किडनैप कर कर्नाटक के टुमकुर रेलवे स्टेशन पर ले जाकर छोड़ दिया.
आपको बता दें कि अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक उस समय कर्नाटक में जाहिद के पास हरियाणा के मेवात में रह रहे अपने परिवार से संपर्क करने का कोई साधन नहीं था और ना ही उनके पास कोई कॉन्टैक्ट बचा था.
इसके बाद जाहिद की मदद हरियाणा के ही जींद जिले के बीबीगांव के सरपंच सुनील जागलान ने की. आपको बता दें कि सुनील वही शख्स हैं जिनके ‘सेल्फी विद डॉटर’ कैंपेन को खुद पीएम मोदी ने खूब सराहा था.
सुनील ने जाहिद के परिवार को खोजने में मदद की. बेंगलुरु से 70 किमी दूर टुमकुर में ही रह रहे जाहिद ने हमारे टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि वह अपने परिवार से मिलने को लेकर बहुत ही उत्साहित हैं. वह 17 जुलाई तक अपने परिवार के पास पहुंच जाएंगे.
खास बात यह है कि जाहिद को अगवा करने वाला उनका ही एक साथी था जो मदरसे में उनके साथ था. टुमकुर में जाहिद ने एक मस्जिद मे पनाह ली जहां एक केबल ऑपरेटर फारुक पाशा उन्हें अपने साथ ले गए.
आपको बता दें कि वहां जाहिद, फारूक के सहायक के तौर पर काम करने लगे और टुमकुर की ही अकीला बानो के साथ निकाह कर लिया. आज उनके दो बच्चे हैं. हालांकि, जाहिद आज तक यह अंदाजा नहीं लगा पाए कि आखिर उन्हें अगवा क्यों किया गया था.
जाहिद का अपने परिवार से मिलने का इंतजार तब खत्म हुआ जब बीते रविवार उन्हें इंटरनेट पर जागलान का फोन नंबर मिला. सुनील जागलान ने जाहिद की पूरी कहानी सुनी और जींद और मेवात की पुलिस से संपर्क किया. इतने सालों में जाहिद लगभग सब भूल चुके थे. उन्हें बस इतना याद था कि उनके अब्बा का नाम अकबर और गांव का नाम ‘सुनेदा’ था.
जागलान ने इस गांव के सरपंच और पुराने सरपंचों से इस बारे में बात की तो पता चला कि अकबर हुसैन का बेटा वर्षों पहले लापता हो गया था. जाहिद 16 साल बाद अपने परिवार के पास पहुंचने जा रहे हैं. शायद यह ईद उनकी जिंदगी की सबसे यादगार ईद है.

कोकीन की लत को छुड़ाने और लगाने वाला एक ‘स्विच’


चीनी वैज्ञानिकों ने एक ऐसा नया प्रोटीन विकसित करने का दावा किया है जो कि कोकीन की लत को छुड़ाने और लगाने वाले एक ‘स्विच’ की तरह काम कर सकता है.
कोकीन डोपामाइन का स्तर बढ़ाकर मस्तिष्क को प्रभावित करती है. डोपामाइन मस्तिष्क संबंधी एक ऐसा ट्रांसमीटर है, जो कि मस्तिष्क के कामकाज में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाता है. इन भूमिकाओं में सम्मान एवं आनंद की अनुभूति भी शामिल है.
कोकीन उन प्रोटीनों पर रोक लगाती है, जो कि डोपामाइन को पुन: अवशोषित कर लेते हैं. इससे डोपामाइन पैदा होता जाता है और व्यक्ति को ‘‘उच्चतम’’ स्तर पर आनंद की अनुभूति होती है.
चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज के तहत आने वाले शंघाई इंस्टीट्यूट्स फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज के एक दल के प्रमुख शोधकर्ता झोउ जियावेई ने कहा कि लत लगने के दौरान डोपामाइन ट्रांसपोर्टर :डीएटी: नामक प्रोटीन तंत्रिका कोशिका में गति करते हुए कोशिका की सतह पर आ जाता है.
झोउ के हवाले से सरकारी अखबार चाइना डेली ने कहा, ‘‘हमने पाया कि मस्तिष्क में डीएटी की स्थिति ही प्रमुख अंतर पैदा करती है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘उलट स्थिति में यह स्थानांतरण नहीं होगा और इस तरह से लत बढ़ने पर रोक लगाई जा सकती है.’’ शोध दल का मानना है कि लत पर रोक लगाने की कुंजी वीएवी2 नामक छोटे से प्रोटीन में छिपी है, जो कि डीएटी के स्थानांतरण का नियमन करते हुए एक आणविक स्विच की तरह काम करता है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि वीएवी2 की इस भूमिका की खोज का इस्तेमाल कोकीन के आदी लोगों को सुधारने के प्रयासों में किया जा सकता है. दूसरे किस्म के नशीले पदाथरें के आदी लोगों को सुधारने के लिए अलग उपाय करने होंगे.
इस खोज से जुड़ा शोधपत्र सात जुलाई को न्यूयार्क के जर्नल नेचर न्यूरोसाइंस की वेबसाइट पर छपा था.

एक खबर ने पूरी दुनिया में कोका कोला को लेकर खलबली मचा दी है.


एक खबर ने पूरी दुनिया में कोका कोला को लेकर खलबली मचा दी है.
‘दी रेनिगेड फार्मासिस्ट’ नाम से ब्लॉग चलाने वाले ब्रिटेन के पूर्व फार्मासिस्ट नीरज नाइक ने कोल्ड ड्रिंक पीने के बाद शरीर के अंदर होने वाले प्रभावों को सबके सामने लाया है. अब इस खबर के बाद से पूरी दुनिया ने कोका कोला पर बने उनके ब्लॉग को सार्वजिनक किया है. जिसके कारण सोशल साइट्स पर ये फिलहाल ट्रैंडिंग टॉपिक में बदला हुआ है.
नीरज नाइक ने एक ग्राफिक के माध्यम से बताया कि कैसे ये ड्रिंक्स शरीर से जरूरी खनिज तत्व बाहर कर देते हैं और इंसान मानसिक और शारीरिक रूप से बदलने लगता है. उन्होंने एक कैन कोक के सेवन से अगले एक घंटे में होने वाले प्रभाव के बारे में बारी बारी से लिखा –
पहले 10 मिनट –  जब आप एक केन कोक पीते हैं तभी आपके शरीर में 10 चम्मच शुगर एकसाथ जाती है. ये मात्रा 24 घंटे में लिए गए शुगर के बराबार होती है. अचानक इतना मीठा खाने से आपको उलटी भी हो सकती है लेकिन इसमें मिले फॉस्फोरिक एसिड के कारण ऐसा नहीं होता. वो इसका टेस्ट बदल देता है.
20 मिनट बाद – पीने के 20 मिनट बाद ही पीने वाले की ब्लड शुगर एकदम से बढ़ जाती है. जिसके कारण शरीर से इंसुलिन  तेजी से निकलता है. शरीर का लिवर इस पर प्रतिक्रिया करता है और इसे फैट में बदलने लगता है.
40 मिनट बाद- अब पीने वालों के शरीर में कैफीन की काफी मात्रा चली जाती है. दूसरी तरफ ब्लड प्रेशर भी बढने लगता है. इसे देखते हुए आपका लिवर खून में और शुगर भेजता है. मस्तिष्क में खून जाना कम होता है जिसके बाद झपकी आनी शुरु हो जाती है.
45 मिनट बाद – इतने समय बाद आपके शरीर को हिरोइन(मादक पदार्थ) लेने जैसा लगने लगता है. शरीर डोपामाइन का उत्पादन बढ़ा देता है. इससे मस्तिष्क का खुशी देने वाला हिस्सा सक्रिय हो जाता है.
60 मिनट बाद – कोक पीने के एक घंटे के बाद तीन प्रक्रिया होती है –
फास्फोरिक एसिड आपके शरीर के निचले इंटेस्टाईन में कैल्शियम,मैग्निशियम और जिंक को इकट्ठा करता है. इससे मेटाबोलिज्म बढ़ता है. शुगर और अन्य आर्टिफिशियल स्वीटनर्स की बढ़ी मात्रा के कारण मेटाबोलिज्म और बढ़ता है. इसके बाद लोग यूरीन के लिए जाते हैं जिसमें कैल्सियम बाहर निकलता है.
2- कैफीन की तरल करने वाला गुण अपना असर दिखाना शुरु करता है और आप बार बार पेशाव के लिए जाते हैं. जिससे शरीर से कैल्शियम, मैग्निशियम, जिंक, सोडियम और पानी बाहर चला जाता है जो वास्तव में आपकी हड्डियों में जाना था.
3- जैसे ही यह प्रक्रिया होती है मीठेपन का अहसास बढ़ जाता है. आप चिड़चिड़े और आलसी हो जाते हैं. कोक में वास्तव में मौजूद पानी यूरिन के जरिए बाहर निकल जाता है. इस तरह कोक पीने से आपके शरीर में हड्डियों और दांतों के लिए आवश्यक खनिज शरीर से बाहर निकल जाते हैं.
वहीं दूसरी तरफ कोका कोला के अधिकारियों ने इस बात को खारिज करते हुए कहा है कि ”हमे चाहने वाले पिछले 129 साल से इसे पी रहे हैं उन्हें कोई तकलीफ नहीं है. ये उसी तरह सेफ है जैसे दूसरे अन्य पेय पदार्थ.”

Saturday 17 December 2016

#Awareness against #Femalefoeticide Share this to reach more ppl.


यदि अाप अपनें गावं में  फिल्म "आठवां वचन एक प्रतिज्ञा" दिखाना चाहते हैं फिल्म को माध्यम बना कन्या भ्रुण हत्या को जड़ से खत्म करना चाहते हैं
तो   हमसे संपर्क करें (24×7)हम शाम के 6pm से 8pm तक, आपके गावं में फिल्म "आठवां वचन " दिखा सकते है,आपको सिर्फ  बिजली की व्यवस्था व लोगों को इकट्ठा करनें का काम  करना होगा , बाकी फिल्म दिखाने की समस्त व्यवस्था व उपकरण हम  स्वंय लेकर आएंगे,  संपर्क करें बेटी बचाओ अभियान को समर्पित --
Ramniwas Sharma GURGAON  --9810042018
Producer ''Aathwan Vachan ek pratigya''  Haryanvi Film

This is a mission against female foeticide by Ram Niwas Sharma. With collaboration of red cross society, they have spread awareness in more than 40000 girls. Spread this message so it reaches more ppl.

Thursday 15 December 2016

#Mystory How I helped in union of a son with father



I was travelling from Borivali to Chandigarh in Paschim Express. I was in Sleeper Class and travelling all alone for first time on that route. So, I had no idea whatsoever. 

I Don't know why but most of the weird experience takes place in sleeper class.

So the event unfolded as follows:

This is a split route train going to Kalka and Amritsar. Chandigarh bound coaches are very few in train, I  think 3 in total so, 219 seats. 

I boarded the  train at Borivali and settled down for the longest journey of my life and I saw a man in his early 80's not so sure about his age.

Him: Aap kaise ho beta (How are you, son?)

Me: I am good uncle. How are you?.

Him: me theek hu. (I am good.). Are you travelling alone or with someone and where are you going?

Me: Me XYZ jaga ja raha hu.(I'm going to XYZ place). ** ya I told him different place :P.

As journey progressed I noticed this guy did not eat litrally anything. Only thing I saw him eat was some peanuts at Borivali thats all.

while having dinner on day 1 I offered him to eat which he politely rejected.

He again started conversation.

Him: I am going to visit my son in chandigarh.

Me: Thats nice. So your son will surely come to pick you up at chandigarh station.

Him: Yes.

TTE came for ticket checking. He gave his ticket which is three months old of same train but going to Borivali  instead of Chandigarh even too that was in wait list. TTE  was very generous he did not collect any fine and allocated upper berth in my compartment as he was very old and did not had any money when asked. 

I felt weird as why his ticket is having 3 months old journey details and that too in Wait List.

While all 4 others in my compartment kept quiet interestingly after all this.

I usually don't sleep in trains but I wish I should have slept that day.

I heard some one having seizures and panic attack and guess what it was him. I was so scared and had no idea what to do next as I was the only one awake. 

I got up and called up RPF guy and we asked him about medicine and all but he did not gave any reply. This all continued about 20 mins and for 4-5 times throughout the night.

I had feeling that something is not right about this guy. So after completing around 1600 KMS we all reached Chandigarh and everyone left. He was sitting there and was having seizures again in freezing cold. I immediately went to RPF office with 2 huge luggages as even there were no RPF nearby.

RPF officer came and I told him that his son was going to pick him up at station and I think he is not coming. It was almost 8 pm and very few people on platform. 

RPF officer took my details and assured me to update me about his whereabouts and I  took his details as well just in case and left to go to IT park.

When i came out and I was waiting for any sort of transport to IT park. 

There I saw MISSING pamphlet on bus stop and guess what it was actually him with all details matching. 

Missing

XYZ , Retired teacher, Has seizures-panic attacks frequently, many details follows.

He is missing from past 3 months if found please contact.

I felt deja-vu all over again. I immediately called given number and he turned out to be his son and I l gave him RPF officers number. 

He called me after 15 mins and literally started crying and told me today I got my father back just because of you !! tell me how can I repay you.

I told him  there is no need just take care of your father and no need to worry and yeah please get him good phone.

Though I  feel it was weird at first but when I  think about it I feel fortunate to be part of father-son reunion after such long time.

He even whatsapp me picture of his father wearing his slippers (he lost his sandals at chandigarh junction).

On that day I did some thing good in my life and helped someone in need and l felt real happiness first time in my life.

Credit - Devansh Jani's Quora Account