31वीं जूनियर नेशनल एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में ब्रांज मेडल जीत चुकी किसान की बेटी अंकिता सिंह लगातार तीसरी बार यूनिवर्सिटी की एथलीट मीट में चैम्पियन बनी। उसने 100 मीटर बाधा दौड़ और 400 फ्लैट रेस में अपना ही रिकॉर्ड ब्रेक किया। dainikbhaskar.com से हुई खास बातचीत में उसने कहा कि एथलीट में इंटरनेशनल लेवल पर नाम रोशन कर पिता के सपनों को पूरा करना चाहती है।
-अंकिता सिंह ने 22 से 25 नवंबर 2015 में रांची के बिरसा मुंडा स्पोर्ट्स स्टेडियम में 31वीं जूनियर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में कांस्य मेडल हासिल किया।
-वे कहती हैं कि जूनियर नेशनल अवार्डी को 50 हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि राज्य सरकार देती है जो उसे आज तक नहीं मिली।
-उसने गोरखपुर एथलेटिक्स एसोसियेशन के अध्यक्ष एनडी सोलंकी को अपना सभी डाक्यूमेंट्स समय पर दे दिया था.
-वह और उसका परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा है।
-वे कहती हैं कि जूनियर नेशनल अवार्डी को 50 हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि राज्य सरकार देती है जो उसे आज तक नहीं मिली।
-उसने गोरखपुर एथलेटिक्स एसोसियेशन के अध्यक्ष एनडी सोलंकी को अपना सभी डाक्यूमेंट्स समय पर दे दिया था.
-वह और उसका परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा है।
बड़ी बहन और कोच कमलेश पाल करते हैं आर्थिक मदद
-अंकिता सिंह गोरखपुर जिले के झंगहा क्षेत्र के निवासी स्व. किसान जय सिंह और दशवंती देवी की बेटी है।
-उसकी एक बड़ी बहन सुनीता सिंह है। सुनीता कानपुर में रहती है और वह स्वास्थ्य विभाग में एएनएम है।
-अपने परिवार के साथ ही सुनीता अपनी छोटी बहन अंकिता और माता का भी पालन-पोषण करने में सहायता करती है।
-अंकिता सिंह बेहद गरीब है। उसके पिता के सपनों को पूरा कराने में उसके कोच कमलेश पाल आर्थिक रूप से भी मदद देते रहते हैं।
-अंकिता सिंह गोरखपुर जिले के झंगहा क्षेत्र के निवासी स्व. किसान जय सिंह और दशवंती देवी की बेटी है।
-उसकी एक बड़ी बहन सुनीता सिंह है। सुनीता कानपुर में रहती है और वह स्वास्थ्य विभाग में एएनएम है।
-अपने परिवार के साथ ही सुनीता अपनी छोटी बहन अंकिता और माता का भी पालन-पोषण करने में सहायता करती है।
-अंकिता सिंह बेहद गरीब है। उसके पिता के सपनों को पूरा कराने में उसके कोच कमलेश पाल आर्थिक रूप से भी मदद देते रहते हैं।
कालेज के प्रबंधक करते हैं मदद
-अंकिता सिंह सरस्वती देवी महाविद्यालय नंदापार, गोरखपुर की बीए थर्ड ईयर की स्टूडेंट है।
-वह कहती है कि कालेज के प्रबंधक पवन दूबे खिलाड़ियों की काफी मदद करते हैं।
-उसने कहा कि कालेज में उसकी महज 1500 रुपए फीस लगती है जबकि फीस 7500 रुपए से अधिक है।
-इसके अतिरिक्त कालेज प्रबंधक द्वारा कोई नया कीर्तिमान बनाने पर नकद पुरस्कार भी खिलाड़ियों को देते हैं।
-अंकिता सिंह सरस्वती देवी महाविद्यालय नंदापार, गोरखपुर की बीए थर्ड ईयर की स्टूडेंट है।
-वह कहती है कि कालेज के प्रबंधक पवन दूबे खिलाड़ियों की काफी मदद करते हैं।
-उसने कहा कि कालेज में उसकी महज 1500 रुपए फीस लगती है जबकि फीस 7500 रुपए से अधिक है।
-इसके अतिरिक्त कालेज प्रबंधक द्वारा कोई नया कीर्तिमान बनाने पर नकद पुरस्कार भी खिलाड़ियों को देते हैं।
रेलवे की नौकरी करना चाहती है अंकिता सिंह
-अंकिता अंकिता सिंह का कहना है कि आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उसे फ़ौरन एक नौकरी की दरकार है।
-रेलवे में नौकरी मिले तो बेहतर है।
-रेल की नौकरी इसलिए बेहतर है क्योंकि वहां खिलाड़ियों को खेलने के लिए और देश का नाम रोशन करने के लिए काफी समय और सुविधा दी जाती है।
-अंकिता अंकिता सिंह का कहना है कि आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उसे फ़ौरन एक नौकरी की दरकार है।
-रेलवे में नौकरी मिले तो बेहतर है।
-रेल की नौकरी इसलिए बेहतर है क्योंकि वहां खिलाड़ियों को खेलने के लिए और देश का नाम रोशन करने के लिए काफी समय और सुविधा दी जाती है।
ये सुविधा मिले तो खिलाड़ी और बेहतर कर सकते है परफार्म
-अंकिता सिंह के कोच कमलेश पाल ने कहा कि खिलाडियों को सुविधा यहां नहीं के बराबर है।
-रीजनल स्पोर्ट्स स्टेडियम में खिलाड़ियों के कोई ख़ास सुविधा नहीं है।
-सुविधा है भी तो वह सामान्य खिलाड़ियों को न मिलकर पहुंच वाले उसका उपयोग करते हैं।
-उन्होंने कहा कि एथलीट को हफ्ते में दो दिन वेट ट्रेनिंग करनी होती है।
-उनकी मसल्स मजबूत हो सके लेकिन उनके खिलाड़ियों को रीजनल स्पोर्ट्स स्टेडियम के उस सेंटर में घुसने तक नहीं दिया जाता।
-गवर्नमेंट कोच के पास बच्चे जाना नहीं चाहते।
-वे प्राइवेट रूप से इन्हें कोच करते हैं। वह भी आये दिन ग्राउंड में कुछ लोग उनसे विवाद करने को उतारू रहते हैं।
-खिलाड़ियों को यहां साफ पेयजल तक की व्यवस्था नहीं होती है।
-अंकिता सिंह जैसे खिलाड़ियों को पढ़ने और उनकी डाईट के लिए गवर्नमेंट को चाहिए कि वह आर्थिक मदद हर महीने करे।
-रीजनल स्पोर्ट्स स्टेडियम में खिलाड़ियों के कोई ख़ास सुविधा नहीं है।
-सुविधा है भी तो वह सामान्य खिलाड़ियों को न मिलकर पहुंच वाले उसका उपयोग करते हैं।
-उन्होंने कहा कि एथलीट को हफ्ते में दो दिन वेट ट्रेनिंग करनी होती है।
-उनकी मसल्स मजबूत हो सके लेकिन उनके खिलाड़ियों को रीजनल स्पोर्ट्स स्टेडियम के उस सेंटर में घुसने तक नहीं दिया जाता।
-गवर्नमेंट कोच के पास बच्चे जाना नहीं चाहते।
-वे प्राइवेट रूप से इन्हें कोच करते हैं। वह भी आये दिन ग्राउंड में कुछ लोग उनसे विवाद करने को उतारू रहते हैं।
-खिलाड़ियों को यहां साफ पेयजल तक की व्यवस्था नहीं होती है।
-अंकिता सिंह जैसे खिलाड़ियों को पढ़ने और उनकी डाईट के लिए गवर्नमेंट को चाहिए कि वह आर्थिक मदद हर महीने करे।
Source - Dainik Bhaskar
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