खाते में करोड़ों थे मगर बुढ़ापे की लाठी न थी। घर में न कोई खाना पूछने वाला था न पानी। बैंक तक जाकर करोड़ों की धनराशि में से फूटी कौड़ी भी निकालने की शरीर में हिम्मत न थी। नतीजा जो हुआ वह सुनकर चौक जाएंगे आप...। इस लाचारी ने अजमेर निवासी करोड़ों की मालकिन कनकलता को बुढ़ापे में भिखारी बना दिया। कभी गैरों को जरूरत पड़ने पर लाखों रुपये की मदद देने वाली कनकलता को बुढ़ापे में पास-पड़ोस से मांग-मांगकर दो जून की रोटी का इंतजाम करना पड़ा। अफसोस.... मरने पर भी दुश्वारियों ने पीछा नहीं छोड़ा और एक अदद कफन भी नसीब नहीं हुई। खैर बाद में किसी तरह पड़ोसियों ने चंदा लगाकर कफन का इंतजाम किया। अंतिम संस्कार से पहले वृद्धा के शरीर को ले जाते समय चौंकाने वाली बात हुई जब लोगो ने बेड हटाया तो उसके नीचे निकले लोहे के बाक्स में चार करोड़ कीमत के फिक्स डिपोजिट के कागजात मिले। पति प्रेमनारायण की दो साल पहले मौत हो जाने के बाद से कनकलता ने खुद को घर के एक कमरे में खुद को सीमित कर लिया था। कनकलता की मौत गुरुवार को हो गई थी मगर किसी को पता नहीं चला। जब चार दिन तक वो नजर नहीं आई तो पड़ोसियों ने आशंकावश दरवाजा खोला तो वो बेड पर मरीं मिलीं।
कागज में कोई नहीं था नामिनी
वृद्धा के फिक्स डिपोजिट कागजातों पर किसी नामिनी का जिक्र नहीं था। क्लेम के अभाव में संबंधित बैंकों ने कागजात अपने कब्जे में ले लिए। अब बैंकों को अधिकृत नामिनी के दावे का इंतजार है। हालांकि छत्तीसगढ़ के एक व्यक्ति ने मौके पर पहुंचकर वृद्धा को अपना दूर का रिश्तेदार बताया। मगर पड़ोसियों ने विरोध करते हुए कहा कि वृद्धा के बुरे दिनों में कभी उसने झांका तक नहीं। जिससे करोड़ों की मालकिन वृद्धा को आखिरी दिनों में फांकाकशी की मौत मिली।
वृद्धा के फिक्स डिपोजिट कागजातों पर किसी नामिनी का जिक्र नहीं था। क्लेम के अभाव में संबंधित बैंकों ने कागजात अपने कब्जे में ले लिए। अब बैंकों को अधिकृत नामिनी के दावे का इंतजार है। हालांकि छत्तीसगढ़ के एक व्यक्ति ने मौके पर पहुंचकर वृद्धा को अपना दूर का रिश्तेदार बताया। मगर पड़ोसियों ने विरोध करते हुए कहा कि वृद्धा के बुरे दिनों में कभी उसने झांका तक नहीं। जिससे करोड़ों की मालकिन वृद्धा को आखिरी दिनों में फांकाकशी की मौत मिली।
परिवार का महत्व बताती है यह दुखभरी घटना
यह महज एक खबर नहीं बल्कि पैगाम भी है। वृद्धा की यह दुखभरी घटना जीवन में परिवार के महत्व को बताती है। बुढ़ापे में लाठी यानी संतान की अहमियत बताती है। संतान न भी हों तो घर में या फिर कोई चिर-परिचित नजदीकी जरूर होना चाहिए जो कि किसी को बुढ़ापे में सहारा दे सके। नहीं तो लाखों-करोड़ों रुपये खाते में पड़े रह जाएंगे और वृद्धा जैसी मौत मिलेगी।
यह महज एक खबर नहीं बल्कि पैगाम भी है। वृद्धा की यह दुखभरी घटना जीवन में परिवार के महत्व को बताती है। बुढ़ापे में लाठी यानी संतान की अहमियत बताती है। संतान न भी हों तो घर में या फिर कोई चिर-परिचित नजदीकी जरूर होना चाहिए जो कि किसी को बुढ़ापे में सहारा दे सके। नहीं तो लाखों-करोड़ों रुपये खाते में पड़े रह जाएंगे और वृद्धा जैसी मौत मिलेगी।
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