सड़क दुर्घटना में घायल की मदद करने वाले लोगों को परेशानी से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आदेश जारी किया है.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की तरफ से बनाए गए दिशा निर्देश को मंज़ूरी दी है और पूरे देश में इसका पालन किए जाने को कहा है. अदालत ने सरकार से कहा है कि वो टीवी और अख़बारों में इस बात का प्रचार करे.
सुप्रीम कोर्ट ने जिन दिशा निर्देशों को मंजूरी दी है उसके मुताबिक दुर्घटना के बाद पुलिस या एम्बुलेंस को बुलाने वाले से जबरन उसकी पहचान नहीं पूछी जाएगी. अगर वो पहचान बताए बिना जाना चाहे तो जाने दिया जाएगा. अस्पताल घायल का तुरंत इलाज शुरू करेंगे और पुलिस के आने तक मदद करने वाले रोका नहीं जाएगा.
अगर घायल की मदद करने वाला अपनी पहचान बताता है और जांच में मदद को तैयार है तब भी उसे कम से कम परेशान किया जाए. पुलिस या कोर्ट उसका बयान एक ही बार में दर्ज करें. उसे बार-बार पेश होने को नहीं कहा जाएगा. अगर वो शख्स बयान के लिए आने में असमर्थ हो तो उसे वीडियो कांफ्रेसिंग की सुविधा दी जाए या उसकी सुविधा की जगह पर जाकर बयान दर्ज किया जाए.
नई गाइडलाइंस में अस्पताल की जवाबदेही भी तय की गई है. अस्पताल में घायल का इलाज ना करने वाले डॉक्टर को प्रोफेशनल मिसकंडक्ट का दोषी माना जाएगा. अस्पताल में अंग्रेजी और स्थानीय भाषा में बोर्ड लगाए जाएंगे, जिसमे लिखा होगा कि सड़क दुर्घटना में घायल की मदद करने वालों को अस्पताल में परेशान नहीं किया जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट के ये दिशा निर्देश कितनी जिंदगिया बचा सकते हैं ये समझने के लिए जरा कुछ आंकड़ों पर गौर कीजिए.
साल 2014 के आंकड़ों के मुताबिक देश में हर रोज सड़क दुर्घटना में 382 मौतें हुईं. 2014 में 4 लाख 89 हजार से ज्यादा सड़क हादसे हुए. जिसमें 1 लाख 39 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर मिनट एक सड़क दुर्घटना होती है और हर चौथे मिनट एक मौत.
चौंकाने वाली बात ये है कि सड़क दुर्घटना में मारे जाने वाले 50 फीसदी लोगों की जान बचाई जा सकती है अगर उन्हें सही समय पर मदद मिल सके.
अब आप भी सड़क पर किसी घायल को देखें तो मदद करने से हिचकिचाइगा नहीं. आपकी मदद किसी की जान बचा जा सकती है
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