Tuesday, 29 November 2016

जान बचाने वाला पिज्जा ब्वॉय!


मुंबई के पवई इलाके के चांदीवली लेक होम सोसाइटी में  रात को लगी आग में जब सभी लोग अपनी और अपने परिवार के लोंगो की जान बचाने में लगे हुए थे उसी समय एक शख्स ऐसा भी था जो अपनी जान को जोखिम में डाल कर दूसरे लोंगो की जान बचाने में लगा हुआ था.
जी हां! इस शख्स ने अपनी जान पर खेलकर कई लोगों की जान बचाई. खास बात है कि वो शख्स कोई फायर बिग्रेड का कर्मचारी नहीं बल्कि एक पिज्जा ब्वॉय था जो पिज्जा डिलीवरी का काम करता है. इस जाबांज पिज्जा ब्वॉय का नाम जितेश आहिरे है.
जितेश नजदीक के पिज्जा शॉप में ही काम करता हैं और जब आग लगी तब वह नजदीक के बिल्डींग में ही पिज्जा पहुंचाने के लिए गया हुआ था.
घटना के चश्मदीदों की मानें तो अगर वहां पर पिज्जा ब्वॉय जितेश आहिरे नहीं पहुंचते तो मृतकों की ये संख्या और बढ़ सकती थी.
जिस समय जितेश आग वाली जगह पर पहुंचे उस समय फायर ब्रिगेड के कर्मचारी भी वहां नहीं पहुंचे थे. आग में फंसे कई लोगों को बचाकर जितेश जाबांज बन चुके हैं. उनकी अपील है कि हादसे के वक्त लोग धैर्य से काम लें.
आपको बता दें कि पवई क्षेत्र के चांदीवली इलाके में शनिवार रात चांदीवली लेक होम सोसाइटी में 22 मंजिला बिल्डिंग में आग लगी थी और इसमें 7 लोंगो की मौत हो गई थी.

नागपुर के श्रीकांत पहले ऑटो चलाते थे, अब प्लेन उड़ाते हैं


कौन कहता है कि आसमां में छेद नहीं हो सकता…एक पत्थर तो तबीयत से उछालों यारों’ पुराने समय में कही गई यह पक्तियां एक बार फिर उस समय सच साबित हुईं जब एक दृढ़ निश्चय और अटूट विश्वास की बदौलत एक ऑटो ड्राइवर ने पायलट बनने के सपने को पूरा किया.
मुंबई में रहने वाले श्रीकांत पंतवाने के पास दृढ़ इच्छा शक्ति के सिवा और कुछ नहीं था. अपने दृढ़ निश्चय और थोड़े बहुत लक की बदौलत श्रीकांत ने वो मुकाम हासिल कर लिया जिसके लिए वह बचपन में सपने देखा करता था.
सिक्योरिटी गार्ड के बेटे पंतवाने अपने स्कूल के दिनों में डिलिवरी ब्वॉय का काम भी किया करते थे. जिसके बाद एक समय ऐसा भी आया जब आर्थिक तौर पर अपने परिवार की दयनीय स्थिति के चलते श्रीकांत को स्कूल और काम में से किसी एक को चुनना पड़ा.
उसके बाद श्रीकांत ने अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए इस आशा के साथ एक ऑटो खरीदा कि जल्द ही वह अच्छे पैसे कमा लेगा और उससे उसकी परेशानियां भी दूर हो जाएंगी और आखिरकार एक दिन उसके नसीब ने इस तरह से करवट बदली  कि उसकी जिंदगी ही पूरी तरह से चेंज हो गई.
आपको बता दें कि श्रीकांत की मुलाकात एक ऐसे व्यक्ति से हुई जो एयरपोर्ट पर काम करता था. वहां उसने सफेद कलर के ड्रेस में एक हैंडसम आदमी को देखा तो उसने अपने दोस्त से इसके बारे में जानकारी ली और तब श्रीकांत को पता चला कि कोई व्यक्ति एयर फोर्स में ना होकर भी पायलट बन सकता है.
आपको बता दें कि उसी दौरान बाहर एक चायवाले से बातचीत में श्रीकांत को पता चला कि डीजीसीए मे पायलट स्कॉलरशिप की एक योजना निकाली है और उसी समय श्रीकांत ने यह निश्चय किया कि वह एक कॉमर्शियल पायलट बनेगा.
मध्यप्रदेश में फ्लाइट स्कूल ज्वॉइन करने के बाद श्रीकांत के सामने सबसे बड़ा चैलेंज इंग्लिश लैंग्वेज था. उसने इस चैलेंज को एक्सेप्ट किया और अपने लैंग्वेज रुपी चुनौती का बखूबी सामना किया.
फ्लाइंग की परीक्षा को पास करने बाद अपने परिवार और खुद की मदद करने के लिए श्रीकांत ने एक कंपनी में एक्सिक्यूटिव की नौकरी की लेकिन उसने कभी भी अपनी उम्मीदें नहीं छोड़ी. आपको बता दें कि दो महीने पहले श्रीकांत को इंडिगो एयरलाइंस की तरफ से उनके पायलटों की सेना में फर्स्ट ऑफिसर के रुप में ज्वॉइन करने का कॉल आया.
ऑटो ड्राइवर की इन चीजों से एक बात स्पष्ट होती है कि अगर इंसान के अंदर किसी काम को करने का हौसला हो और भाग्य रुपी पंखों का उसे सहारा मिल जाए तो वह अपनी जिन्दगी में बड़े से बड़े मुकाम को भी हासिल कर सकता है.

जहां शौचलय नहीं, वह ससुराल नहीं #SwachchBharat


बिहार के सीवान जिले के एक गांव में एक दुल्हन ने विद्या बालन के जुमले ‘जहां सोच वहां शौचालय’ की तर्ज पर कहा, ‘जहां शौचलय नहीं, वह ससुराल नहीं’ और दूल्हे व बारात को बैरंग लौटा दिया.
दुल्हन को जब पता चला कि उसके ससुराल में शौचालय नहीं है, तब उसने दूल्हे के साथ जाने से इनकार कर दिया. इस मामले को लेकर पंचायत भी बैठी, लेकिन दुल्हन ने साफ कहा कि ससुराल में जब तक शौचालय नहीं बनेगा, वह वहां नहीं जाएगी.
पुलिस ने गुरुवार को बताया कि सीवान जिले के हसनपुरा नोनियाडीह गांव निवासी शंभू महतो की बेटी पूजा की शादी सारण जिले के बड़का मोहम्मदपुर गांव निवासी धनंजय कुमार से तय हुई. मंगलवार को बारात आई और पूरे रस्मोरिवाज के साथ शादी संपन्न भी हो गई. बाद में 10वीं पास दुल्हन पूजा को ससुराल में शौचालय न होने का पता चला.
दूसरे दिन सुबह जब विदाई का समय आया, तब पूजा ने दो टूक कह दिया कि वह ससुराल तब तक नहीं जाएगी जब तक वहां शौचालय नहीं बनवाया जाता.
पूजा के इस निर्णय पर उसके पिता और गांव के लोग भी साथ हो गए. बाद में इस मामले को लेकर पंचायत भी बैठी, लेकिन पूजा अपने निर्णय पर अड़ी रही. पूजा के पिता शंभू ने बताया कि पंचायत में भी यह फैसला किया गया है कि पहले पूजा के ससुराल में शौचालय बनाया जाए, फिर दूल्हा आए और दुल्हन को विदाई कराकर ले जाए.

दिल्ली पुलिस की सजगता और तत्परता. 7 मिनट में मौके पर पहुंचकर पीसीआर के जवानों ने बचाई महिला की जान


दिल्ली पुलिस की सजगता और तत्परता ने एक बार फिर पुलिस का नाम लोगों के दिलों में रोशन करने का काम किया है जहां पीसीआर के जवानों ने 7 मिनट में पहुंचकर एक महिला को घर में जलने से बचा लिया जिससे महिला की जान बच गई.
16 जून को दिल्ली के फतेहपुर बेरी के आकाश फार्महाऊस में से पीसीआर को काल मिली की एक घर में एक सास ने अपनी बहू को घर के कमरे में बंद करके बाहर से आग लगा दी है. जिसके बाद पीसीआर वेन नम्बर e36 अगले 7 मिनट में मौके पर पहुच गई और वहा देखा की घर के मेन गेट पर आग लगी हुई थी.
जिसके बाद पीसीआर में तैनात जवानो ने घर का दरवाजा तोड़ कर महिला को सही सलामत बचा लिया. इसके बाद मौके पर पहुंची लोकल पुलिस ने महिला का बयान दर्ज कर शिकायत के आधार पर मामला दर्ज कर लिया है.
महिला ने पुलिस को बताया की वो अपने परिवार के साथ यहां रहती है और उसके पति माली है सुबह 7 बजे जब उसके पति अपने पिता के साथ काम पर चले गए और दिन में तीन बजे उनकी सास ने उन्हें पानी की मोटर चलाने के लिए कहा और जैसे ही वा कमरे में लगी मोटर को खोलने गई उनकी सास ने बाहर साई कमरा बंद कर बाहर से जलती हुई लकड़ी कमरे में फैक दी.
जिसके बाद कमरे में रखे कपड़ो में आई लगने से महिला का दम घुटने लगा जिसके बाद महिला ने अपने पति को फ़ोन किया और उसके बाद महिला के पिता ने पीसीआर को फ़ोन कर बुलाया और महिला की जान बचा ली गई.
इस मामले में पुलिस में महिला की शिकायत पर महिला की सास के खिलाफ धारा 342 और 324 के तहत मामला दर्ज कर जाच शुरू कर दी है. तो वही अपनी जान पर खेल कर महिला की जान बचाने के लिए पीसीआर में तैनात हैड कोंस्टेबल देश राज मीना , कोंस्टेबल देवेन्द्र और कॉन्स्टेबल कैलाश को सम्मानित किया है.

रेस्टोरेंट के लाइट के नीचे पढ़ता है यह बच्चा! #inspirational


वैसे तो आपने दीपक की रोशनी से लेकर लालटेन  की रोशनी में पढ़ने वाले तमाम बच्चों के बारे में देखा और सुना होगा लेकिन क्या आपने कभी किसी रेस्टोरेंट की लाइट के नीचे किसी बच्चे को पढ़ते देखा है.
हाल ही में ऐसा एक दिलचस्प नजारा मान्डउवे शहर  में देखने को मिला जहां रात के अंधेरे में जब अधिकांश बच्चे खेलने में लगे हुए थे उसी समय एक लड़का ऐसा भी था जो मेक्डॉनेल रेस्टोरेंट के लाइट के नीचे पढ़ने में तल्लीन था.
डेली मेल में छपी एक खबर के मुताबिक यह घटना मान्डउवे शहर की है जहां जॉएसी टॉरेफ्रेंका नाम की एक मेडिकल स्टूडेंट ने अपने कैमरे से एक ऐसा फोटो क्लिक किया जो वास्तव में दिल को छू जाने वाला था. दरअसल यह फोटो एक मासूम बच्चे का था जो रात में मेक्डॉनेल रेस्टोरेंट के लाइट के नीचे स्टडी कर रहा होता है.
डेनियल केब्रेरा नाम का इस लड़के की उम्र महज 9 साल है और यह बेघर बच्चा तीसरी क्लास का स्टूडेंट है. संसाधनों की कमी के चलते यह रात में मेक्डॉनेल रेस्टोरेंट के लाइट के नीचे स्टडी कर रहा होता है.
आपको बता दें कि जॉएसी ने इस लड़के को मेक्डॉनेल रेस्टोरेंट के लाइट के नीचे एक टेबल पर किताब पढ़ते देखा तो वह उससे काफी प्रभावित हुई. जिसके बाद जॉएसी ने इस फोटो को फेसबुक पर पोस्ट किया और लिखा कि वह इस बच्चे से काफी इंस्पायर है.
डेनियल का सपना बड़ा होकर डॉक्टर या पुलिस ऑफिसर बनना है. आपको बता दें कि डेनियल के पिता की मृत्यु हो चुकी है और उसके घर को जला दिया गया है. अब उसके साथ उसकी मां और उसका छोटा भाई एक टूटे हुए घर में रहते हैं.
आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि डेनियल पर आगे बढ़ने का जुनून इस कदर सवार है कि जब उसके दोस्त और क्लासमेट्स फुटबाल खेल रहे होते हैं तब भी डेनियल रेस्टोरेंट के लाइट के नीचे स्टडी कर रहा होता है. जॉएसी के इस पोस्ट को पढ़ने के बाद शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा जिसके दिल को यह बात नहीं छू ली हो.

दिल को छू जाने वाली एक घटना में जब माँ ने किया इंकार तो सास ने गुर्दा दिया


दिल को छू जाने वाली एक घटना में एक सास ने अपना एक गुर्दा देकर अपनी बहू की जान बचा ली जबकि उसकी मां आखिरी समय में इससे पीछे हट गई.
पश्चिमी दिल्ली निवासी 36 वर्षीय गृहणी कविता के गुर्दे का प्रत्यारोपण होना था और उसकी मां शुरू में अपना एक गुर्दा उसे देने के लिए तैयार थी ताकि उसकी पुत्री की जान बच जाए. लेकिन आखिरी समय में वह पीछे हट गई और तब कविता की सास विमला(65) आगे आयी और अपना एक गुर्दा देकर उसकी जान बचायी.
बीएलके सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल के वरिष्ठ सलाहकार और नेफ्रोलॉजी विभाग के निदेशक डा. सुनील प्रकाश ने कहा, ‘‘यह कोई फिल्मी कहानी नहीं है बल्कि एक सच्ची घटना है जिसका अंत सुखद रहा. कविता का अस्पताल में सफल गुर्दा प्रत्यारोपण किया गया. वह ठीक है, एक सास और बहू के बीच ऐसा मधुर रिश्ता देखना अद्भुत है.’’

104 साल की अम्मा ने बदल दी गांव की तकदीर! आज यह गांव खुले में शौच से मुक्त है.


छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में गंगरेल जलाशय के समीप नैसर्गिक तथा वन संपदाओं से परिपूर्ण ग्राम कोटार्भी है. जिला मुख्यालय धमतरी से यह गांव मात्र 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. धमतरी के कलेक्टर भीम सिंह की अपील पर गांव की 104 साल की वृद्धा कुंवर बाई यादव सबसे पहले शौचालय बनाने के लिए आगे आईं. कुंवर बाई की दृढ़इच्छा शक्ति ने आज गांव की तकदीर बदल कर रख दी है.
बकरियां चराकर जीवन-यापन करने वाली कुंवर बाई ने बकरियां बेचकर 22 हजार रुपये में गांव में सबसे पहले शौचालय बनाया. इतना ही नहीं, स्वच्छता अभियान से प्रेरित कुंवर बाई ने बाकायदा घर-घर जाकर लोगों को शौचालय बनाने के लिए प्रेरित भी किया और गांववालों को इसके फायदे समझाने में कामयाब भी हुईं. आज यह गांव खुले में शौच से मुक्त है.
ग्राम पंचायत बरारी के आश्रित ग्राम कोटार्भी में लगभग साढ़े चार सौ की जनसंख्या है. गांव को खुले में शौच मुक्त बनाने बेमिसाल नेतृत्व क्षमता का परिचय देने वाली 104 वर्षीया कुंवर बाई की अद्भुत कहानी है. बकरियां चराकर जीवन-यापन करने वाली की बूढ़ी काया भले ही जवाब दे रही हो, लेकिन उनकी जिंदादिली आज भी ग्रामीणों के लिए अनुकरणीय है.
जीवन के आखिरी पड़ाव में भी उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति लाजवाब है. उन्होंने बकरियों को बेचकर 22 हजार रुपये जुटाए और गांव में सबसे पहले शौचालय बनवाया, जो नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्पद है. आज कोटार्भी के सभी घरों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत शौचालय निर्मित हो चुके हैं.
इतना ही नहीं, जंगल ऊपरपारा में रह रहे 30 कमार परिवारों ने भी स्वच्छता और शौचालय की अनिवार्यता को आत्मसात करते हुए अपने घरों में शौचालय बनवा लिए हैं. अब कोई लोटा लेकर जंगल की तरफ नहीं जाता.
ग्राम स्वच्छता निगरानी समिति के सदस्य लवकुश ध्रुव, भगेलाराम यादव, राजकुमार ध्रुव, हेमलाल कमार व मयाराम कमार ने बताया कि 30 साल के इतिहास में पहली बार जिले के कलेक्टर भीम सिंह व मुख्य कार्यपालन अधिकारी (जिला पंचायत) पी.एस. एल्मा ने चौपाल लगाकर स्वच्छता के प्रति लोगों की सोच बदल दी है. कोटार्भी के लोग 15 जुलाई को अपने गांव को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित कर चुके हैं.
ग्राम की महिलाएं कमला साहू, फुलेश्वरी यादव, कीर्ति बाई यादव, केशरी ध्रुव, मीना बाई ध्रुव, तुलसी ध्रुव आदि ने समवेत स्वर में कहा, “तन बदलगे मन बदलगे जिनगी के चिंतन बदलगे. अब टुटिस अंधियारी के बंधन, चेहरा अउ दरपन बदलगे, जिनगी के चिंतन बदलगे.”

16 साल के भारतीय मूल के अनमोल ने बनाया गूगल से तेज सर्च इंजन


भारतीय मूल के कनाडावासी 16 साल के अनमोल टुकरेल ने एक प्राइवेट सर्च इंजन बनाया है, अनमोल के दावे के अनुसार यह सर्च इंजन गूगल से 47 फीसदी बेहतर है.
वेबसाइट ‘प्रेसएक्जामिनर डॉट कॉम’ के अनुसार, युवा टुकरेल ने अपने स्कूल प्रोजेक्ट के तौर पर इस सर्च इंजन को तैयार किया है और इसे गूगल विज्ञान मेला को भी भेजा है.
भारत के बेंगलुरू स्थित डिजिटल विज्ञापन एवं प्रौद्योगिकी कंपनी ‘आईसक्रीम लैब्स’ में इंटर्नशिप करने के दौरान टुकरेल के दिमाग में निजीकृत सर्च इंजन बनाने का विचार आया. उन्होंने इस आइडिया पर आगे काम करने का फैसला किया.
टुकरेल का कहना है कि यह सर्च इंजन दूसरे सर्च इंजनों के विपरीत उपयोगकर्ता के व्यक्तित्व को ध्यान में रखकर नतीजे दिखाता है, जबकि अन्य सर्च इंजन यूजर की लोकेशन और ब्राउजिंग हिस्ट्री के आधार पर परिणाम देते हैं.
टुकरेल के सर्च इंजन में हालांकि अभी न्यूयॉर्क टाइम्स में एक वर्ष के बीच प्रकाशित लेख ही संगृहीत हैं.
टुकरेल ने एक कम्प्यूटर, एक पॉयथन लैंग्वेज डेवलपमेंट एनवायरमेंट, एक स्प्रेडशीट प्रोग्राम की मदद से इस सर्च इंजन को तैयार किया है, जो गूगल और न्यूयॉर्क टाइम्स के उन एक वर्ष के लेखों को प्रदर्शित करता है.
सर्च इंजन की एक्यूरेसी की जांच करने के लिए टुकरेल ने सर्च को न्यूयॉर्क टाइम्स में एक वर्ष के भीतर प्रकाशित लेखों तक सीमित रखा है.

जज्बे को सलाम: 95 साल की उम्र में इस बिहारी बुजुर्ग ने लिया एमए में दाखिला


कहते हैं पढ़ने-लिखने की कोई उम्र नहीं होती. इस कहावत को 95 साल के बुजुर्ग राज कुमार वैश्य ने सही साबित कर दिखाया है. अर्थशास्त्र विषय में स्नातकोत्तर (एमए) की डिग्री के सपने को पूरा करने के लिए राज कुमार ने उम्र की सीमा को धता बताते हुए पटना स्थित नालंदा मुक्त विश्वविद्यालय में दाखिला लिया है.
राजकुमार मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बरेली के रहनेवाले वाले हैं, जिनका जन्म 1 अप्रैल, 1920 को हुआ था. उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा बरेली के एक स्कूल से 1934 में पास की थी. इसके बाद उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से 1938 में स्नातक की परीक्षा पास की और यहीं से कानून की भी पढ़ाई की.
राज कुमार वैश्य 1980 में झारखंड के कोडरमा से एक प्राइवेट फर्म से जनरल मैनेजर के पद से रिटायर हुए. वो अपने परिजनों के साथ पटना के राजेन्द्र नगर में रहते हैं. वैश्य के पुत्र संतोष कुमार एनआईटी पटना से सेवानिवृत्त हुए हैं, जबकि उनकी पत्नी प्रोफेसर भारती एस़ कुमार पटना विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हैं.
वैश्य ने बताया, “एमए की पढ़ाई करने की ख्वाहिश 77 साल से उनके सीने में दबी थी. रिटायर हुए भी 38 साल हो गए. जिम्मेदारियों को पूरा करने में समय ही नहीं मिला. अब जाकर उनका सपना पूरा हुआ.”
वैश्य कहते हैं कि पिछले दिनों जब उन्होंने एमए की पढ़ाई करने में रुचि दिखाई तो बेटे ने कहा इस उम्र में पढ़ाई करना बहुत मुश्किल काम होगा, पर बाद में उन्होंने मेरा सहयोग करने का निश्चय किया.
वैश्य कहते हैं, “मैंने निश्चित किया है कि सुबह शाम दो-दो घंटे पढ़ाई करूंगा. “
इस सम्बंध में जब वैश्य ने नालंदा मुक्त विश्वविद्यालय से संपर्क किया तो विश्वविद्यालय प्रशासन ने भी नामांकन लेने की इच्छा जताई. विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार एस पी सिन्हा ने बताया कि विश्वविद्यालय प्रशासन की एक टीम भेजकर उन्होंने सम्मान स्वरूप वैश्य के घर जाकर मंगलवार को दाखिले की औपचारिकता पूरी की.  
एस पी सिन्हा ने कहा, “यह नामांकन उन लोगों के लिए प्रेरणादायी है, जिन्होंने किसी कारणवश पढ़ाई छोड़ दी है.फिलहाल उन्होंने अध्ययन सामग्री की मांग की है जो उन्हें जल्द ही उपलब्ध करायेंगे. “
राज कुमार वैश्य का कहना है कि उन्हें डिग्री की जरूरत नहीं है, बल्कि अर्थशास्त्र के अध्ययन के जरिए वह देश की आर्थिक समस्यायों को समझना चाहते हैं और अगर संभव हो तो देश की प्रगति में कुछ योगदान देना चाहते हें.
95 वर्ष की उम्र में भी राज कुमार वैश्य अब भी बिना चश्मे के देख सकते हैं. साथ ही धाराप्रवाह हिन्दी और अंग्रेजी बोल सकते हैं. उन्हें किताबें, अखबार पढ़ना और टीवी सीरियल देखना पसंद है. वैश्य कहते हैं उनकी लम्बी उम्र  सादे जीवन और ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास का फल है.

रिक्शा चालक ने लौटाया 1.17 लाख रूपए से भरा बैग #Goodjob



जयपुर में रिक्शा चलाने वाला आबिद कुरैशी प्रतिदिन 200 से 300 रूप्ए कमाता है लेकिन फिर भी उसने सडक पर मिले एक लाख 17 हजार रूपए से भरे बैग को ईमानदारी का परिचय देते हुए पुलिस को लौटा दिया.
जयपुर के गवर्नमेंट हास्टल के पास  आबिद (25) को पोलिथिन का बैग मिला जिसमें एक लाख 17 हजार रूपये थे वह उस बैग को उसके मालिक को वापस लौटाना चाहता था और उसके इंतजार में वह सर्किल पर दस बजे तक खडा रहा. लेकिन जब कोई नहीं आया तो वह अपने घर चला गया.
अनपढ आबिद ने घटना के बारे में अपनी पत्नी अमीना को बताया और दोनों ने तय किया कि वे रकम लौटा देंगे. लेकिन उन्हें मुस्लिम होने के कारण थाना जाने से घबराहट हो रही थी.
दंपति ने आज संवाददाताओं से कहा, ‘‘ हम पूरी रात अच्छी तरह से सो नहीं पाये, अगली सुबह हमने घटना के बारे में पडोसियों को बताया तो उन्होंने हमें बैग अपने पास रखने की सलाह दी और कहा कि इन रूपयों से हमारी जिन्दगी बदल सकती है. लेकिन हमें पता था कि बिना ईमान के कमाये धन से हमारी परेशानियां बढ सकती हैं, इसलिये हमने बैग को रखना उचित नहीं समझा.’’
कल दंपति ने जयपुर पुलिस कमिश्नर जंगा श्रीनिवास राव से सम्पर्क किया और उन्हें बैग सौंप दिया.
जंगा ने आबिद की ईमानदारी की तारीफ करते हुए कोतवाली पुलिस को नोटों से भरा पालिथीन बैग जब्त करने को कहा. श्रीनिवास राव ने बताया कि जयपुर पुलिस जल्दी ही उसकी ईमानदारी के लिये उसे सम्मानित करेगी.
कोतवाली थानाधिकारी चिरंजीलाल ने कहा कि नोटों से भरे पालिथिन के बैग के लिये एक आदमी ने उनसे सम्पर्क किया था. उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति ने कहा कि दो लाख रूपए से अधिक का एक पालिथीन बैग गवर्नमेंट सर्किल के पास गिर गया था. उसके दावे की जांच की जा रही है. उन्होंने कहा कि बैग अब अदालत के आदेश पर ही छूट सकता है.

ज़िंदा है आज भी इंसानियत। गाँववालो ने बचाया मूक जानवर को



केरल के इर्नाकुलम में 6 साल का हाथी का बच्चा अपने परिवार से बिछड़ कर 15 फुट गहरे कुएं में गिर गया.
करीब 5 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद इसको कुंए से निकाला जा सका. इस बचाव काम में वन विभाग के कर्मचारियों के साथ गांव वाले भी शामिल हुए थे.
हाथी के बच्चे को निकालने में बचाव दल और गांव वालों को बहुत देर तक मशक्कत करनी पड़ी. अंत में बचाव दल की मेहनत और अपनी सूंड़ की मदद से हाथी का बच्चा बाहर आने में कामयाब हुआ. उसके बाहर निकलते ही दर्शकों ने खुशी का इजहार किया.
बाहर निकलने के बाद हाथी सीधा जंगल की ओर चला गया, बाद में वन विभाग के अधिकारियों ने उस पर नजर रखी जहां वह अपने परिवार  के साथ जुड़ गया था.

इस पुलिस थाने में 23 साल में दर्ज हुए केवल 55 मुकदमे #inspiration



जैसलमेर जिले में एक थाना ऐसा भी है जहां 23 वर्ष में महज 55 मुकदमे दर्ज हुए हैं और जहां पुलिस कर्मियों के पास कोई काम ही नहीं है. कई बार पूरे साल में एक भी मुकदमा दर्ज नहीं होता.
इस थाने को 23 साल तक हेड कांस्टेबल ही संभालता रहा और अब जा कर इस थाने को थानेदार मिला है. शाहगढ़ का यह थाना जैसलमेर में पाकिस्तान सीमा से सटा है, जहां 23 वर्ष में महज 55 मुकदमे दर्ज हुए हैं. और सबसे बड़ी बात ये है कि इसमें एक भी मुकदमा रेप का नहीं है. ये खूबी इस थाने को दूसरे थानों से अलग करता है.
पुलिस सूत्रों के अनुसार, साल 1993 में सीमा पार से तस्करी रोकने के लिए शाहगढ़ थाना खोला गया था. तारबंदी के बाद तस्करी पर लगाम भी लगी. सीमावर्ती क्षेत्र के इस थाने पर 200 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का जिम्मा है. इस थाने के अन्तर्गत दो पंचायतों की 10 हजार की आबादी आती है.
वर्ष 2016 में अब तक कोई मामला नहीं दर्ज हुआ. 2015 में सिर्फ दो मामले दर्ज हुए, वे भी सड़क दुर्घटना के. वर्ष 2014 में तीन मामले दर्ज हुए, एक मारपीट का, दूसरा चोरी का और तीसरा सड़क दुर्घटना का. राज्य अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक कपिल गर्ग ने बताया कि थाने में बिजली सौर ऊर्जा से मिलती है और पानी बाहर से लाया जाता है.
उन्होंने बताया कि कभी साल भर मुकदमा दर्ज न हो लेकिन अंत में अगर एक मुकदमा दर्ज हो जाए और उसका निस्तारण न हो तो भी वर्ष के अंत में पेंडेंसी का प्रतिशत 100 आता है.

Tuesday, 15 November 2016

The only village in 21st century uses Sanskrit in daily communication



                                              MATTUR
Mattur (or Mathur) is a village near the city of Shivamogga in Karnataka state, India, known for the usage of Sanskrit for day-to-day communication, although the general language of the state is Kannada.
Mattur has a temple of Rama, a Shivalaya, Someshwara temple and Lakshmikeshava temple.
Mattur's twin village, Hosahalli, shares almost all the qualities of Mattur. Hosahalli is situated across the bank of the Tunga River. These two villages are almost always referred to together.
Mattur and Hosahalli are known for their efforts to support Gamaka art, which is a unique form of singing and storytelling in Karnataka. These are two of the very rare villages in India where Sanskrit is spoken as a regional language.Sanskrit is the vernacular of a majority of the 5,000 residents of this quaint, sleepy hamlet situated a little over 8 km from Shimoga.


Tuesday, 8 November 2016

70 हजार रुपए में 25 साल तक मिलेगी फ्री बिजली


केंद्र सरकार एक ऐसी स्‍कीम लेकर आई है, जिसमें आप महज 70 हजार रुपए खर्च कर 25 साल तक मुफ्त बिजली पा सकते हैं। हर महीने आपके बि‍जली के भारी-भरकम बिल की टेंशन खत्‍म करने के लिए यह एक अच्‍छा ऑफर है। दरअसल, सोलर पैनल लगाने वालों को केंद्र सरकार का न्‍यू एंड रिन्यूएबल एनर्जी मंत्रालय रूफटॉप सोलर प्‍लांट पर 30 फीसदी सब्सिडी मुहैया करा रहा है। बिना सब्सिडी के रूफटॉप सोलर पैनल लगाने पर करीब 1 लाख रुपए का खर्च आता है।

एक सोलर पैनल की कीमत तकरीबन एक लाख रुपए है। राज्यों के हिसाब से यह खर्च अलग होगा। सब्सिडी के बाद एक किलोवॉट का सोलर प्लांट मात्र 60 से 70 हजार रुपए में कहीं भी इन्स्टॉल करा सकते हैं। वहीं, कुछ राज्य इसके लिए अलग से अतिरिक्त सब्सिडी भी देते हैं।

  1. सोलर पैनल खरीदने के लिए आप राज्य सरकार की रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट अथॉरिटी से संपर्क कर सकते हैं।
  2. राज्यों के प्रमुख शहरों में कार्यालय बनाए गए हैं।
  3. हर शहर में प्राइवेट डीलर्स के पास भी सोलर पैनल उपलब्ध हैं।
  4. अथॉरिटी से लोन लेने के लिए पहले संपर्क करना होगा।
  5. सब्सिडी के लिए फॉर्म भी अथॉरिटी कार्यालय से ही मिलेगा।
  6. 25 साल होती है सोलर पैनलों की उम्र
यह बिजली आपको सौर ऊर्जा से मिलेगी। इसका पैनल भी आपकी छत पर लगेगा। यह प्लांट एक किलोवाट से पांच किलोवाट क्षमता तक होंगे। यह बिजली न केवल निशुल्क होगी, बल्कि प्रदूषण मुक्त भी होगी।

सरकार की तरफ से पर्यावरण संरक्षण के मद्देनजर यह पहल शुरू की गई है। जरूरत के मुताबिक, पांच सौ वाट तक की क्षमता के सोलर पावर पैनल लगा सकते हैं। इसके तहत पांच सौ वाट के ऐसे प्रत्येक पैनल पर 50 हजार रुपए तक खर्च आएगा।

23 सालों से साइकिल से बेसहारा बच्चों को मुफ़्त में पढ़ा रहा है ये ‘साइकिल टीचर’

“जहां भी मुझे बच्चे मिलते हैं मेरी साइकिल उनको पढ़ाने के लिए वहीं पर रुक जाती है.” यह कहना है एक ऐसे इंसान का जो पिछले 23 साल बेसहारा बच्चों को पढ़ा रहा है. दुनिया इस इंसान को साइकिल टीचर के नाम से जानती है. कुछ लोग होते हैं, जो अपने लिए नहीं बल्कि समाज के लिए जीते हैं. लखनऊ के आदित्य कुमार ऐसे ही लोगों में से एक हैं.


आदित्य कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद में हुआ है. तमाम आर्थिक परेशानियों के बावजूद उन्होंने कानपुर से बायोलॉजी में बीएससी किया और आस-पास के निर्धन बच्चों को मुफ्त में पढ़ाने लगे. इस बात से उनके परिवार वाले काफ़ी नाराज़ हुए. अंत में अपने सपनों को पूरा करने के लिए आदित्य ने घर छोड़ दिया और लखनऊ आ गए. आदित्य कुमार अब तक 4500 बच्चों को पढ़ा चुके हैं.

Monday, 7 November 2016

पॉल्यूशन कंट्रोल करने के लिए दिल्ली सरकार उठा रही है कड़े कदम!


धुंध के असर ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्लीको एक गैस चैंबर में तब्दील कर दिया है. इससे निजात पाने के लिए दिल्ली सरकार ने कई कड़े कदम उठाएं हैं. =
  • दिल्ली सरकार ने इस स्थिति से निपटने के क्रम में सभी स्कूलों को तीन दिनों के लिए बंद कर दिया है.
  • मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कंस्ट्रक्शन और तोड़-फोड़ के कामों पर पांच दिन और डीजल जनरेटरों के इस्तेमाल पर 10 दिन का बैन लगा दिया है.
  • पॉल्यूशन कंट्रोल करने के लिए साउथ दिल्ली के बदरपुर में मौजूद कोयला आधारित थर्मल पॉवर प्लांट को 10 दिनों तक बंद करने के लिए कहा है.
  • शहर की सड़कों पर बड़े पैमाने पर जल का छिड़काव करने और लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) द्वारा 100 फुट चौड़ी सभी सड़कों की वैकुअम से सफाई करने का निर्देश जारी किया है.
  • कूड़ा-कचरा और पत्तों के जलाने पर प्रतिबंध को सख्ती से लागू करने के भी निर्देश दिए गए हैं.
  • ओड-ईवन प्लान को फिर से लागू करने की योजना भी बनाई जा रही है.
  • दिल्ली में कूड़ाघरों में लगने वाली आग पर कंट्रोल करने के भी आदेश दिए हैं.
  • केजरीवाल ने लोगों को घर के अंदर और वर्क फ्रॉम होम करने की सलाह दी है.
  • केजरीबाल के मुताबिक, दिल्ली सरकार आर्टिफिशिल बारिश करने पर भी विचार कर रही है. लेकिन इस पर अभी चर्चा होनी बाकी है.

Sunday, 6 November 2016

क्यों मनाते है छठ महापर्व



छठ पर्व सूर्य की आराधना का पर्व है और कहा जाता है कि सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं. इसलिए छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की भी संयुक्त आराधना होती है. सुबह के समय यानि चौथे दिन सूर्य की पहली किरण यानि ऊषा और शाम के समय यानि तीसरे दिन सूर्य की अंतिम किरण यानि प्रत्यूषा को अर्घ्य देकर दोनों का नमन किया जाता है.
यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। पारिवारिक सुख-स्मृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को स्त्री और पुरुष समान रूप से मनाते हैं। इस दौरान व्रत करने वाले लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी नहीं ग्रहण करते है।
छठ पर्व को किसने शुरू किया इसके पीछे कई ऐतिहासिक कहानियां प्रचलित हैं। पुराण में छठ पूजा के पीछे की कहानी राजा प्रियंवद को लेकर है। कहते हैं राजा प्रियवंद को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को याहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वो पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को पूजा के लिए प्रेरित करने को कहा।
राजा प्रियंवद ने पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी की व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। और तभी से छठ पूजा होती है।

6 में से 5 बच्चों को नहीं मिलता पर्याप्त पोषण: यूनिसेफ #initiative

दुनियाभर में दो साल से कम उम्र के छह में से केवल एक बच्चे को पर्याप्त पोषण मिलता है, जबकि पांच बच्चे इससे वंचित रह जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के अनुसार, जीवन के शुरुआती दो साल बच्चों के शारीरिक एवं विकास विकास के लिए महत्वपूर्ण होते हैं, जिसके लिए उन्हें पर्याप्त पोषण की आवश्यकता होती है। इसके बावजूद अधिकांश बच्चों को इस उम्र में पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता।
यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि पिछले 10 वर्षो में गंभीर कुपोषण में कमी आई है, लेकिन पांच साल से कम उम्र के 15.6 करोड़ बच्चे अब भी कुपोषित हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अमीर या गरीब सभी देशों में स्तनपान बच्चों के लिए पोषण का सबसे बढ़िया माध्यम है, फिर भी कुछ ही बच्चों को इसका लाभ मिल पाता है।
स्तनपान पर केंद्रित हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि बच्चों को छह महीने की आयु से ठोस, अर्ध ठोस और नरम आहार दिया जाना चाहिए, लेकिन कई बच्चों को बहुत जल्दी या देर से इन आहारों को दिया गया जिससे उनके विकास और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
बहुत कम बच्चों को पैदा होने के एक घंटे के भीतर जीवन के लिए महत्वपूर्ण स्तनपान कराया जाता है और छह से लेकर 23 महीने तक के सिर्फ आधे बच्चों को ही उम्र के अनुसार न्यूनतम पोषक आहार मिल पाता है।
रिपोर्ट में कहा गया कि अमीर या गरीब देशों में लंबे समय तक स्तनपान करने वाले बच्चे बुद्धिमान होते हैं और शैक्षणिक स्तर पर बेहतर प्रदर्शन करते हैं।
स्तनपान मोटापा और पुरानी बीमारियों को खत्म करने में सहायक होता है। स्तनपान कराने वाली माताओं को गर्भाशय व स्तन कैंसर का खतरा कम होता है।

कैंसर मरीजों की मदद के लिए आगे आया 'पिंक होप'



 कैंसर को लेकर जागरूकता और बीमारी को लेकर मरीजों में डर को खत्म करने के लिए राजधानी में एचसीजी कैंसर सेंटर के डॉक्टरों ने दिल्ली में 'द पिंक होप कैंसर पेशेंट सपोर्ट ग्रुप' की शुरुआत की है। इस समूह में कैंसर सर्वाइवर्स (कैंसर होने के बाद ठीक हो चुके लोगों)और कैंसर के मरीज शामिल हैं।
'द पिंक होप कैंसर पेशेंट सपोर्ट ग्रुप' कैंसर के मरीजों और उनकी देखभाल कर रहे लोगों में इस बीमारी के प्रति डर दूर करने में मदद करता है। साथ ही बीमारी के मुश्किल इलाज में कैंसर मरीजों और उनके परिजनों की सहायता करता है। इस समूह का लक्ष्य बीमारी से लड़ने की ताकत और सकारात्मक रवैये को प्रोत्साहन देना है। पिंक होप कैंसर पेशेंट सपोर्ट ग्रुप सामुदायिक आधार पर कैंसर के संबंध में जनजागरूकता फैलाता है। यह सपोर्ट ग्रुप एचसीजी फाउंडेशन का एक भाग है।
दिल्ली में पिंक होप कैंसर पेशेंट सपोर्ट ग्रुप की शुरुआत से न केवल दूसरे कैंसर सर्वाइवर्स आगे बढ़कर इस बीमारी से जूझ रहे मरीजों की मदद कर सकेंगे बल्कि उनमें इलाज के प्रति विश्वास भी जगा सकेंगे। इससे मरीजों को प्रोत्साहन और समर्थन मिलेगा।