कहते हैं पढ़ने-लिखने की कोई उम्र नहीं होती. इस कहावत को 95 साल के बुजुर्ग राज कुमार वैश्य ने सही साबित कर दिखाया है. अर्थशास्त्र विषय में स्नातकोत्तर (एमए) की डिग्री के सपने को पूरा करने के लिए राज कुमार ने उम्र की सीमा को धता बताते हुए पटना स्थित नालंदा मुक्त विश्वविद्यालय में दाखिला लिया है.
राजकुमार मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बरेली के रहनेवाले वाले हैं, जिनका जन्म 1 अप्रैल, 1920 को हुआ था. उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा बरेली के एक स्कूल से 1934 में पास की थी. इसके बाद उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से 1938 में स्नातक की परीक्षा पास की और यहीं से कानून की भी पढ़ाई की.
राज कुमार वैश्य 1980 में झारखंड के कोडरमा से एक प्राइवेट फर्म से जनरल मैनेजर के पद से रिटायर हुए. वो अपने परिजनों के साथ पटना के राजेन्द्र नगर में रहते हैं. वैश्य के पुत्र संतोष कुमार एनआईटी पटना से सेवानिवृत्त हुए हैं, जबकि उनकी पत्नी प्रोफेसर भारती एस़ कुमार पटना विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हैं.
वैश्य ने बताया, “एमए की पढ़ाई करने की ख्वाहिश 77 साल से उनके सीने में दबी थी. रिटायर हुए भी 38 साल हो गए. जिम्मेदारियों को पूरा करने में समय ही नहीं मिला. अब जाकर उनका सपना पूरा हुआ.”
वैश्य कहते हैं कि पिछले दिनों जब उन्होंने एमए की पढ़ाई करने में रुचि दिखाई तो बेटे ने कहा इस उम्र में पढ़ाई करना बहुत मुश्किल काम होगा, पर बाद में उन्होंने मेरा सहयोग करने का निश्चय किया.
वैश्य कहते हैं, “मैंने निश्चित किया है कि सुबह शाम दो-दो घंटे पढ़ाई करूंगा. “
इस सम्बंध में जब वैश्य ने नालंदा मुक्त विश्वविद्यालय से संपर्क किया तो विश्वविद्यालय प्रशासन ने भी नामांकन लेने की इच्छा जताई. विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार एस पी सिन्हा ने बताया कि विश्वविद्यालय प्रशासन की एक टीम भेजकर उन्होंने सम्मान स्वरूप वैश्य के घर जाकर मंगलवार को दाखिले की औपचारिकता पूरी की.
एस पी सिन्हा ने कहा, “यह नामांकन उन लोगों के लिए प्रेरणादायी है, जिन्होंने किसी कारणवश पढ़ाई छोड़ दी है.फिलहाल उन्होंने अध्ययन सामग्री की मांग की है जो उन्हें जल्द ही उपलब्ध करायेंगे. “
राज कुमार वैश्य का कहना है कि उन्हें डिग्री की जरूरत नहीं है, बल्कि अर्थशास्त्र के अध्ययन के जरिए वह देश की आर्थिक समस्यायों को समझना चाहते हैं और अगर संभव हो तो देश की प्रगति में कुछ योगदान देना चाहते हें.
95 वर्ष की उम्र में भी राज कुमार वैश्य अब भी बिना चश्मे के देख सकते हैं. साथ ही धाराप्रवाह हिन्दी और अंग्रेजी बोल सकते हैं. उन्हें किताबें, अखबार पढ़ना और टीवी सीरियल देखना पसंद है. वैश्य कहते हैं उनकी लम्बी उम्र सादे जीवन और ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास का फल है.